रविवार, अप्रैल 14

सिप्रोफ्लोक्सासिन गोली किस काम आती है?

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सिप्रोफ्लोक्सासिन गोली किस काम आती है?

सिप्रोफ्लोक्सासिन (Ciprofloxacin) एक फ़्लोरोक्विनोलोन वर्ग का एंटीबायोटिक है जिसका उपयोग कई तरह के बैक्टीरियल इंफेक्शन के इलाज में किया जाता है। सिप्रोफ्लोक्सासिन बैक्टीरिया की ग्रोथ को रोककर काम करती हैं। यह वायरल इंफेक्शन जैसे सर्दी जुकाम आदि में प्रभावी नहीं है।

सिप्रोफ्लोक्सासिन गोली के रूप में, आंख या कान की ड्राप के रूप में या नस में इंजेक्शन के रूप में उपलब्ध हैं।

सिप्रोफ्लोक्सासिन का उपयोग दस्त, टाइफाइड, बुखार,  मूत्र मार्ग के इंफेक्शन में, प्रोस्टेट इंफेक्शन , हड्डी और जोड़ों में इंफेक्शन, पेट में इंफेक्शन, Lung इंफेक्शन, त्वचा में इंफेक्शन और सिफलिस (syphilis) आदि इंफेक्शन में डॉक्टर सिप्रोफ्लोक्सासिन गोली का उपयोग करता है। कुछ संक्रमणों के लिए इसका उपयोग अन्य एंटीबायोटिक दवाओं के साथ किया जाता है। 

सिप्रोफ्लोक्सासिन का उपयोग तभी किया जाना चाहिए जब कोई  सेफ एंटीबायोटिक उस इंफेक्शन के लिए उपलब्ध नहीं हो क्योंकि इसके कई साइड इफेक्ट भी हैं।


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गुरुवार, फ़रवरी 29

एमाइलेज टेस्ट (amylase test)

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एमाइलेज क्या हैं? (what is amylase)

एमाइलेज एक पाचक एंजाइम (digestive enzyme) है जो पैंक्रियाज और स्लाइवरी ग्लेंड द्वारा बनाया जाता हैं। एमाइलेज हमारे शरीर में कार्बोहाइड्रेट और स्टार्च को शुगर में तोड़ने में मदद करता है।

डॉक्टर आमतौर पर एक्यूट और क्रोनिक pancreatitis के डायग्नोसिस के लिए एमाइलेज टेस्ट (amylase test) का उपयोग करते हैं। एमाइलेज टेस्ट में एमाइलेज एंजाइम की मात्रा को जांचा जाता है। रक्त में आमतौर पर थोड़ी मात्रा में एमाइलेज़ होता है। लेकिन इनका स्तर बहुत अधिक होना किसी स्वास्थ्य समस्या का संकेत हो सकता है।

यदि एमाइलेज टेस्ट में रक्त में बहुत अधिक एमाइलेज पाया जाता है, तो यह पैंक्रियाज डिसऑर्डर या अन्य हैल्थ प्रॉब्लम का संकेत दे सकता है। टेस्ट के पहले 8 से 12 घंटे तक का बिना कुछ खाए सैंपल (fasting sample) देना चाहिए।

एमाइलेज़ की नॉर्मल रेंज (serum amylase normal range)

एक सामान्य व्यक्ति में एमाइलेज़ की नॉर्मल रेंज व्यक्ति दर व्यक्ति और लैब के अनुसार भिन्न-भिन्न होती है। लेकिन मोटे तौर पर एमाइलेज़ की नॉर्मल रेंज 19 से 86 units per liter के बीच होनी चाहिए।



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सोमवार, फ़रवरी 26

लाल टॉप ट्यूब के उपयोग (Red Top Tube)

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लेबोरेटरी में उपयोग की जानी वाली विभिन्न प्रकार की ट्यूब का प्रयोग किया जाता है और इसको पहचानने के लिए कलर कोड का उपयोग किया जाता है। इसमें ट्युब पर लगे ढक्कन को विभिन्न रंगो- जैसे लाल, हरा, बैंगनी, काला, पीला आदि का प्रयोग किया जाता हैं। इन सभी ट्युब का विशेष उद्देश्य के लिए उपयोग होता है। जैसे हरे रंग के ढक्कन की ट्युब का प्रयोग हिपेरिन युक्त एन्टीकोअगुलेन्ट के लिए होता हैं और बैगनी ढक्कन वाली ट्युब का प्रयोग EDTA युक्त एन्टीकोअगुलेन्ट के लिए होता हैं। इसी क्रम में इस टॉपिक में हम एक और ट्यूब के बारे में जानेंगे जिसका ढक्कन का रंग लाल होता हैं जिसे प्लैन वाइल या एसएसटी ट्यूब कहा जाता हैं।

लाल ट्यूब एक सीरम (Serum) ट्यूब है जिसका उपयोग बायोकेमेस्ट्री जैसे टेस्ट (routine chemistry tests) के लिए किया जाता है। इसमें किसी एन्टीकोअगुलेन्ट का उपयोग नहीं किया जाता है बल्कि ब्लड क्लॉट शीघ्र हो इसके लिए कॉगुलेशन (coagulation) को बढ़ाने के लिए क्लॉट एक्टिवेटर (Clot activator) मिला हो सकता है।

ब्लड कलेक्शन के लिए किसी उपयुक्त वैन (vain) से और उपयुक्त माध्यम से रक्त संग्रह करना होता हैं। ब्लड कलेक्शन के लिए ब्लड ऑर्डर का ध्यान रखें। हीमोलाईसिस से बचने के लिए रक्त को यथाशीघ्र और सफाई से ट्यूब में डालें। धीमी गति से संग्रह करने और सुई से बार-बार प्रिक करने से बचें। कंटेनर को उचित स्तर तक भरें और ज़ोरदार हिलाने से बचें। ब्लड ऑर्डर में इस ट्युब का क्रम चौथा होता हैं।

ट्युब में सैंपल लेने का क्रम इस प्रकार है-
1. ब्लड कल्चर बोतल
2. नॉन-एडिटिव ट्यूब
3. नीला ढक्कन की ट्युब
4. क्लॉट एक्टिवेटर (लाल ढक्कन की ट्युब)
5. हरे ढक्कन की ट्युब
6. बैगनी ढक्कन की ट्युब

सैम्पल लेने के बाद ट्युब को कमरे के तापमान पर या 37℃ तापमान पर आधे घंटे के लिए रख दिया जाता हैं। सैम्पल क्लॉट होने के बाद क्लॉट एक्टिवेटर (लाल शीर्ष ट्यूब) को सेंट्रीफ्यूज किया जाता हैं। सेंट्रीफ्यूज करने से रक्त के थक्के और सीरम को अलग किया जाता है।

सीरम (serum) सतह पर तैरनेवाला द्रव है जिसे थक्का बनने और लाल टॉप ट्यूब (red top) में एकत्रित रक्त के सेंट्रीफ्यूजेशन के बाद हटा दिया जाता है। यदि संभव हो तो सीरम को क्लॉट कोशिकाओं से अलग किया जाना चाहिए और एक अलग ट्युब में रखा जाना चाहिए। एक अच्छी तरह से पूरी तरह भरी हुई 10 मिलीलीटर लाल टॉप ट्यूब से सीरम की अनुमानित मात्रा 5 मिलीलीटर (लगभग 50%से अधिक) होती है।

क्लिनिकल पैथोलॉजी और एंडोक्रिनोलॉजी में कुछ टेस्ट के लिए सीरम को अलग किया जाना चाहिए। इस नई ट्युब पर मरीज का नाम और आई डी अंकित करना चाहिए। इस सीरम को उसी दिन उपयोग हो जाना चाहिए। यदि टेस्ट में देरी हो तो इसे 2-8℃ तापमान पर रखना चाहिए। इस प्रकार से सुरक्षित सीरम का उपयोग 7 दिन तक विभिन्न प्रकार के टेस्ट में उपयोग किया जा सकता हैं।

रसायन विज्ञान (Biochemistry)

ब्लड शुगर (blood glucose)
किडनी फंक्शन टेस्ट (RFT)
Urea
Creatinine
Uric Acid
Electrolytesलिवर फंक्शन टेस्ट (LFT)
Bilirubin
SGOT
SGPT
Total protein
Albumin
Alkaline phosphataseलिपिड प्रोफाइल टेस्ट (Lipid profile)
Cholestrol
Triglyceriod
HDL
LDL
Calcium
phosphorous
Megnesium
Uric Acid
Amylase
Lypase
CPK
LDH
vitamin E
vitamin D
Vitamin B12

सीरोलॉजी (serology)HIV

Widal
CRP
ASO
RA factor
ANA
RPR
CA 125
CA 19.9CA 15.3
VDRL
HbsAg
HCV
Typhidot
Toxoplasma gondii IHA testing
TORCH
Rubella
CMV
PSA
HIV
HbsAg
HCV
VDRL

एंडोक्रिनोलॉजी (endocrinology)

Thyroid panels
TSH
T3
T4
FT4
Prolectin
Testosteron
Progesteron
E2
Beta Hcg
LH
FSHE2

Cortisol tests and certain drug levels
सीरम को ACTH endogenous और ACTH और इंसुलिन (Insulin) टेस्ट के लिए स्वीकार नहीं किया जाता है। केवल EDTA प्लाज्मा स्वीकार किया जाता है।

कुछ मामलों में सीरम सेपरेटर ट्यूब (टाइगर टॉप) को रेड टॉप (red top) ट्यूब के स्थान पर इस्तेमाल किया जा सकता है, लेकिन प्रोजेस्टेरोन जैसे कुछ एंडोक्रिनोलॉजी और क्लिनिकल पैथोलॉजी परीक्षणों के लिए इससे बचना चाहिए।

ब्लड बैंक (blood bank)

क्रॉस मैच या Compatibility टेस्ट के लिए सीरम और ईडीटीए दोनों रक्त प्रत्येक दाता और प्राप्तकर्ता से जमा किया जाता हैं।
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मंगलवार, फ़रवरी 13

थायराइड फंक्शन टेस्ट क्या है? (Thyroid)

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थायराइड क्या है? (What is thyroid)

थायराइड (Thyroid) एक छोटी सी ग्रंथि है जो गर्दन में आगे की तरफ निचले हिस्से में स्थित होती है। थायराइड ग्रंथि प्रमुख रूप से दो तरह के हार्मोन उत्पन्न करती है।
(1) टी थ्री T3 या ट्राईआयोडोथायरोनिन और
(2) टी फोर T4 यानी थायरोक्सिन


थायराइड क्यों होता है? (Thyroid causes)

यदि थायराइड ग्रंथि इन हार्मोन्स का पर्याप्त उत्पादन नहीं करती तो इन हार्मोन्स की कमी हो जाती हैं जिसे हाइपोथायरायडिज्म कहते हैं। इसके फलस्वरूप पिट्युटरी ग्रंथि थायराइड को उत्तेजित करने की कोशिश करती है, जिससे वह थायराइड के उत्पादन को बढ़ाने वाला हार्मोन टीएसएच की मात्रा को बढ़ाती है।
इसके विपरीत जब हार्मोन अधिक उत्पन्न होता है तो इसे हाइपरथायराडिज्म कहा जाता है।

हाइपोथायरायडिज्म और हाइपरथायराडिज्म दोनों सेहत के लिए अच्छा नहीं माना जाता हैं और इसका सही लेवल में होना आवश्यक हैं। थायराइड टेस्ट से ही इसके लेवल को जाना जा सकता हैं और नियंत्रित किया जा सकता है।

थायराइड के लक्षण (Thyroid symptoms)

पतले होने वाले थायराइड के लक्षण या हाइपरथायराडिज्म के लक्षण

वजन घटना
घबराहट या चिड़चिड़ापन
तेज़ और अनियमित दिल की धड़कन
थकान
सोने में कठिनाई
मांसपेशियों में कमजोरी
गर्मी बर्दाश्त करने में परेशानी
हाथों में कंपकंपी
बार-बार मल त्यागना या दस्त होना

मोटे होने वाले थायराइड के लक्षण हाइपोथायरायडिज्म के लक्षण

वजन बढ़ना
थकान
सूजन
हमेशा ठंड महसूस होना
जोड़ों और मांसपेशियों में दर्द
कब्ज़
रूखी त्वचा या बाल
अवसाद
पसीना कम आना


थायराइड फंक्शन टेस्ट क्या है?

थायराइड की जांच के लिए रक्त का सैंपल देना होता हैं। इनके लिए 2-3 ml ब्लड दिया जाता हैं। थायराइड टेस्ट की रिपोर्ट उसी दिन प्राप्त की जा सकती हैं। रिपोर्ट को देखें कि आपके T3, T4 और TSH की वैल्यू क्या है। नीचे के पैराग्राफ में T3, T4 और TSH की नॉर्मल रेंज दी गई हैं। इससे मिलान करके देखें कि आपकी रिपोर्ट नॉर्मल रेंज में हैं या हाइपोथायरायडिज्म या हाइपरथायराडिज्म।


महिलाओं में थायराइड कितना होना चाहिए?

आइए जानते हैं टी थ्री, टी फोर और टीएसएच की नॉर्मल रेंज क्या है?
  • एक व्यक्ति में टी थ्री (T3) की मात्रा 80 से 220 नैनो ग्राम प्रति डेसी लीटर होनी चाहिए। 
  • टी फोर (T4) की मात्रा 5 से 12 माइक्रोग्राम प्रति डेसीलीटर होनी चाहिए। 
  • एक वयस्क व्यक्ति में टीएसएच (TSH) की नॉर्मल की रेंज 0.5 से 5 मिली इंटरनेशनल यूनीट प्रति लीटर होनी चाहिए।
                  Thyroid
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सोमवार, फ़रवरी 12

डिक्लोफेनाक सोडियम टैबलेट किस काम आती है (diclofenac tablet uses)

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डिक्लोफेनाक सोडियम टैबलेट किस काम आती है (diclofenac tablet uses)

अक्सर हरे पत्ते वाली गोली के रूप में मांगे जाने दवा कोई और नहीं बल्कि डाइक्लोफेनाक या डिक्लोफेनाक (diclofenac) ही है। डिक्लोफेनाक (diclofenac) एक नॉनस्टेरॉइड एंटी-इंफ्लेमेटरी दवा (NSAID) है।

डिक्लोफेनाक का उपयोग (diclofenac uses)

डिक्लोफेनाक (diclofenac) का उपयोग दर्द बुखार और इन्फ्लेमेशन या सूजन को दूर करने के लिए किया जाता हैं।
यह हमारे शरीर में inflammation पैदा करने वाले कुछ पदार्थों के उत्पादन को रोककर काम करता है। जिससे सूजन, दर्द या बुखार को कम करने में मदद मिलती है।


यह दवा कई फॉर्मूलो के साथ और ब्रांड नेम में आती है, जिनका उपयोग विशिष्ट ट्रीटमेंट में होता हैं और इसमें डिक्लोफेनाक (diclofenac) की मात्रा भी अलग-अलग होती है। जैसे 25 एमजी या 50 एमजी या 75 एमजी और 100 एमजी

डिक्लोफेनाक (diclofenac) दो अलग-अलग साल्ट में उपलब्ध होती है जिन्हें डाइक्लोफेनाक सोडियम (diclofenac sodium) और डाइक्लोफेनाक पोटेशियम (diclofenac potassium) कहा जाता है। साथ ही यह डिक्लोफेनाक टेबलेट (diclofenac tablet) डिक्लोफेनाक इंजेक्शन (diclofenac injection) और डिक्लोफेनाक जेल (diclofenac gel) के रूप में मार्केट में अवेलेबल होती है।

डिक्लोफेनाक सोडियम एंड पेरासिटामोल टेबलेट किस काम आती है?

डिक्लोफेनाक (diclofenac) का उपयोग सर दर्द, बदन दर्द, कमर दर्द, हाथ और पैरों में दर्द जैसे दर्द के लिए, बुखार, ऑस्टियोआर्थराइटिस या रुमेटीइड आर्थराइटिस, माइग्रेन, चोट आदि के लक्षणों के इलाज के लिए डॉक्टर डिक्लोफेनाक सोडियम और पेरासिटामोल टेबलेट का उपयोग करता हैं।

डिक्लोफेनाक के दुष्प्रभाव (diclofenac reaction) 

डिक्लोफेनाक (diclofenac) को लेने से पहले उन लोगों को विशेष तौर पर सावधानी बरतने की आवश्यकता है जिन्हें allergic reaction हैं या liver or kidney disease या asthma हैं। गर्भवती और दूध पिलाने वाली माता और 18 वर्ष से कम उम्र के लिए इसका सेवन वर्जित है।

डिक्लोफेनाक (diclofenac) दवा आपका रक्तचाप बढ़ा सकती है। heart bypass surgery के ठीक पहले या बाद में इस दवा का उपयोग नही करना चाहिए। इससे दिल का दौरा या स्ट्रोक का खतरा बढ़ सकता है।

डिक्लोफेनाक (diclofenac) से पेट या आंतों में रक्तस्राव भी हो सकता है, जो घातक हो सकता है इसलिए जिन्हें पेट में अल्सर की शिकायत है उनको इन दवाई का सेवन नहीं करना चाहिए।

डिक्लोफेनाक (diclofenac) ओव्यूलेशन ovulation को प्रभावित कर सकता है तो यदि आप इसका सेवन करते हैं तो गर्भ ठहरने में कठिनाई हो सकती है।

इसके अलावा पेट ख़राब होना, मतली, दस्त, कब्ज, गैस, सिरदर्द, उनींदापन, चक्कर आना या दृष्टि धुंधली होने के रिएक्शन के लक्षण भी देखें गए हैं।
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रविवार, फ़रवरी 11

सिजेरियन डिलीवरी के कितने दिन बाद पीरियड आता है?

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मासिक धर्म क्या हैं?

किसी महिला में मासिक धर्म या पीरियड्स हर महीने शरीर को गर्भावस्था के लिए तैयार करने की प्रक्रिया हैं। मासिक धर्म तब होता है, जब गर्भाशय से रक्त और ऊतक योनि से बाहर आते हैं। ऐसा आमतौर पर हर महीने होता है।

हर महिला में 2 अंडाशय होते हैं। मासिक धर्म चक्र के दौरान एस्ट्रोजन और प्रोजेस्टेरोन हार्मोन अंडाशय में अंडों को परिपक्व बनाते हैं। ये हार्मोन आपके गर्भाशय की परत को मोटा और स्पंजी भी बनाते हैं। एक बार जब अंडा अंडाशय से निकल जाता है, तो यह आपके एक फैलोपियन ट्यूब से होते हुए आपके गर्भाशय की ओर बढ़ता है।

यदि गर्भावस्था नहीं होती है, तो आपके शरीर को गर्भाशय में मोटी परत की आवश्यकता नहीं होती है। आपकी परत टूट जाती है और रक्त, पोषक तत्व और ऊतक योनि के माध्यम से आपके शरीर से बाहर निकल जाते हैं।

मासिक चक्र कितने दिन का होता है?

मासिक धर्म और अवधि एस्ट्रोजन और प्रोजेस्टेरोन जैसे हार्मोन द्वारा नियंत्रित होते हैं। आमतौर पर मासिक-चक्र की अवधि 28 दिन की होती है किंतु किसी किसी में यह दो-चार दिन कम या अधिक हो सकती है।


सिजेरियन डिलीवरी के कितने दिन बाद पीरियड आता है?

गर्भावस्‍था के दौरान नौ महीने तक मासिक धर्म या पीरियड्स नहीं आते हैं लेकिन डिलीवरी के बाद दोबारा से मासिक चक्र शुरू हो जाता है।

हर महिला में प्रेग्‍नेंसी के बाद का पहला पीरियड अलग होता है क्‍योंकि यह महिला विशेष पर निर्भर करता है। डिलीवरी के बाद मासिक चक्र या पीरियड्स दोबारा शुरू होता है और इस दौरान कई चीजें आपके पीरियड्स को प्रभावित करती हैं।

पीरियड वापिस शुरू होना, दरअसल आपके ब्रेस्‍टफीडिंग पैटर्न पर निर्भर करता हैं और इसमें हार्मोंस की भूमिका अहम होती हैं क्‍योंकि प्रेग्‍नेंसी के बाद एस्‍ट्रोजन और प्रोजेस्‍टेरोन हार्मोंस तेजी से गिरने लगते हैं। ब्रेस्‍टमिल्‍क के लिए प्रोलैक्टिन जरूरी होता है, जो प्रजनन हार्मोंस को दबा सकता है। इससे पहला पीरियड देरी से आ सकता है।

अगर आप डिलीवरी के बाद से ही लगातार स्‍तनपान करवा रही हैं, तो हो सकता है कि बेबी को दूध पिलाते रहने तक आपको पीरियड्स न आएं। वहीं अगर आप स्‍तनपान नहीं करवा रही हैं, तो आपको डिलीवरी के बाद पांच से छह हफ्तों में वापिस से पीरियड्स आने शुरू हो सकते हैं।

सिजेरियन डिलीवरी हुई हो या नॉर्मल, इसका दोबारा पीरियड शुरू होने पर कोई असर नहीं पड़ता है। आमतौर पर डिलीवरी के 6 से 8 सप्ताह बाद पीरियड दोबारा शुरू होता है लेकिन जैसा कि पहले बताया गया हैं। सभी महिलाओं पर यह एक समान लागु नहीं होता हैं।
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शनिवार, जनवरी 6

वीएलडीएल क्या है (vldl cholesterol in hindi)

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वीएलडीएल क्या है? (vldl full form)

वीएलडीएल (VLDL) का मतलब Very Low Density Lipid यानी "बहुत कम घनत्व वाला लिपोप्रोटीन" है। लिपोप्रोटीन वे कण हैं जो ब्लड में लिपिड को पहुंचाते हैं।

वीएलडीएल भी एक प्रकार का लिपोप्रोटीन है जिसे लीवर बनाता है और ब्लड सर्कुलेशन में भेजता है। अपनी रासायनिक संरचना के कारण कोलेस्ट्रॉल और ट्राइग्लिसराइड्स रक्त में अकेले ट्रेवल नहीं कर सकते हैं। इसीलिए उन्हें शरीर के विभिन्न अंगों और ऊतकों तक ले जाने के लिए लिपोप्रोटीन की आवश्यकता होती है।

वीएलडीएल का मुख्य काम ट्राइग्लिसराइड्स और कोलेस्ट्रॉल को उन जगहों तक ले जाना है जहां उनकी जरूरत है। अपनी इस ट्रांसपोर्टर की भूमिका में, वीएलडीएल आपके शरीर को ऊर्जा प्राप्त करने, ऊर्जा संग्रहित करने और ब्लड प्रेशर को नियंत्रित करने में मदद करते हैं। इसलिए, वे आपके संपूर्ण शारीरिक कार्य के लिए महत्वपूर्ण हैं। लेकिन आपके रक्त में बहुत अधिक वीएलडीएल होना खतरनाक हो सकता है और हृदय रोग का खतरा बढ़ सकता है।

वीएलडीएल में अधिकतर ट्राइग्लिसराइड्स होते हैं। इनमें कोलेस्ट्रॉल, फैटी एसिड और एपो-लिपोप्रोटीन नामक प्रोटीन का एक रूप भी होता है।

सभी लिपोप्रोटीन वसा और प्रोटीन से बने होते हैं। उदाहरण के लिए हर एक प्रकार के लिपोप्रोटीन में लिपिड और प्रोटीन की मात्रा अलग-अलग होती है। साथ ही उनका रूप भी अलग-अलग होता हैं। वीएलडीएल में हाई ट्राइग्लिसराइड के कारण "ट्राइग्लिसराइड-रीच लिपोप्रोटीन" कहते हैं।

एक व्यक्ति में लिपिड प्रोफाइल टेस्ट द्वारा वीएलडीएल के स्तर को जाना जा सकता है। ध्यान रहे यह सैंपल भूखे पेट दिया जाना चाहिए।


वीएलडीएल की गणना (vldl calculator)

जब हम लिपिड प्रोफाइल टेस्ट करते हैं तो हम देखते हैं कि इसका कोई टेस्ट कीट हमारे पास अवेलेबल नहीं होता है। इस कारण वीएलडीएल को हम कैलकुलेट करके रिजल्ट देते हैं। तो आईए देखते हैं कि इसकी कैलकुलेशन फॉर्मूला क्या है और यह किस प्रकार से कैलकुलेट किया जाता है।

वीएलडीएल को कैलकुलेट करने के तीन फार्मूले हैं, जो इस प्रकार से है।

(1) TC = VLDL + HDL + LDL
                      या
     VLDL= TC- HDL- LDL
                      या
     VLDL = TC - (HDL + LDL)

यदि किसी व्यक्ति का टोटल कोलेस्ट्रॉल 200 mg/dl, एलडीएल कोलेस्ट्रॉल 120 mg/dl और एलडीएल कोलेस्ट्रॉल 50 mg/dl हो तो वीएलडीएल निम्नानुसार होगा।

          = 200 - (50+120)

          = 30

(2) फ्रिएडवाल्ड्स समीकरण (friedewald equation) 
  
    VLDL = TG ÷ 5 

यह फार्मूला दो तथ्यों पर आधारित है कि 
A) वीएलडीएल में सबसे ज्यादा ट्राइग्लिसराइड होते हैं। 
B) वीएलडीएल में हर 5 ट्राइग्लिसराइड पर एक कोलेस्ट्रॉल का पार्ट होता हैं।

यदि किसी व्यक्ति का ट्राइग्लिसराइड स्तर 150 mg/dl हो तो वीएलडीएल निम्नानुसार होगा।

         VLDL = 150 ÷ 5

                    = 30

फ्रिएडवाल्ड्स समीकरण की सीमाएं

1). यदि किसी का ट्राइग्लिसराइड लेवल 400 mg/dl से अधिक हो। 

2). क्रोनिक किडनी डिजीज हो।

3). कोई व्यक्ति मेडिसिन ले रहा हो।

4). कोई व्यक्ति फास्टिंग सैम्पल नहीं दे रहा हो।


3) ट्राइग्लिसराइड स्तर को मैनेज करने के लिए विल्सन ने एक और फार्मूला दिया था जिसके माध्यम से यदि किसी व्यक्ति का ट्राइग्लिसराइड स्टार 400 से अधिक है तो इस फार्मूले का इस्तेमाल वीएलडीएल को कैलकुलेट करने के लिए किया जा सकता है और यह फार्मूला इस प्रकार है।

          VLDL = TG x 0.166

यदि किसी व्यक्ति का ट्राइग्लिसराइड स्तर 600 mg/dl हो तो वीएलडीएल निम्नानुसार होगा।

        = 600 x 0.166

        = 99.6 mg/dl


इस फार्मूले में भी एक सीमा है कि यदि ट्राइग्लिसराइड स्तर 1000 mg/dl के अंदर ही है, तब तक यह फार्मूला काम करेगा।ट्राइग्लिसराइड स्तर 1000 mg/dl से अधिक होने पर इस फार्मूले को इग्नोर किया जाना चाहिए।

वीएलडीएल नॉर्मल रेंज (vldl normal range)

एक सामान्य व्यक्ति में वीएलडीएल का स्तर 30 मिलीग्राम प्रति डिसिलिटर से कम होने पर इसे नॉर्मल रेंज में कहा जाता है।
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शुक्रवार, जनवरी 5

बिलीरुबिन (bilirubin in hindi)

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बिलीरुबिन क्या हैं (what is bilirubin)

बिलीरुबिन (bilirubin) एक प्रकार का रंजक (pigment) हैं जिसका निर्माण रक्त में पाए जाने वाली आरबीसी के टूटने पर होता हैं। इसे मल और मूत्र के साथ उत्सर्जित कर दिया जाता हैं।

बिलीरुबिन का निर्माण (Bilirubin formation)

खून में मौजूद लाल रक्त कोशिकाओं या आरबीसी (RBC) का जीवनकाल 120 दिन का होता है। लगभग 120 दिनों के बाद इन सेल्स को रेटिकुलोएंडोथेलियल सिस्टम द्वारा ब्लड सर्कुलेशन से हटा दिया जाता है।

आरबीसी के टूटने से निकला हीमोग्लोबिन आगे और टूटकर दो भागों में बट जाता है जिसे हेम और ग्लोबिन कहा जाता है। अधिकांश ग्लोबिन हाइड्रोलाइज्ड हो जाता है जबकि हेम आगे और टूट कर आयरन और पोरफायरिन में बदल जाता है।

आयरन नई आरबीसी के निर्माण में काम आ जाता है जबकि पोरफायरिन आगे बिलिवर्डिन में बदल जाता हैं जो मेटाबॉलाइज होकर बिलीरुबिन का निर्माण करता हैं। इसे इनडायरेक्ट बिलीरुबिन कहा जाता है या दूसरे शब्दों में अनकंजुगेटेड बिलीरुबिन भी कहा जाता है।
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यह बिलीरुबिन टॉक्सिक पदार्थ होता है जिसे शरीर के बाहर निकालना आवश्यक होता है किंतु यह पानी में घुलनशील नहीं होता है। इस कारण यह बिलीरुबिन प्लाज्मा में एल्ब्यूमिन से बंध कर लिवर में जाता है।

लिवर में बिलीरुबिन एल्ब्यूमिन से अलग हो कर ग्लुकुरोनिक एसिड से जुड़ जाता हैं। इस कारण इसे कंजुगेटेड बिलीरुबिन कहते हैं। कई बार इसे डायरेक्ट बिलीरुबिन भी कहा जाता हैं।

चूंकि डायरेक्ट बिलीरुबिन पानी में घुलनशील होता है तो इसे पित्त यानी बायल (bile) में आसानी से उत्सर्जित किया जा सकता है।

आंत में यह यूरोबिलिनोजन में मेटाबॉलाइज होता है और अधिकतर स्टूल में स्टर्कोबिलिन और स्टर्कोबिलिनोजेन के रूप में उत्सर्जित होता है।

यूरोबिलिनोजेन का कुछ भाग आंत से पुनः अवशोषित हो जाता है और यूरिन में यूरोबिलिन और यूरोबिलिनोजेन के रूप में उत्सर्जित होता है।

सीरम बिलीरुबिन इनडायरेक्ट (serum bilirubin indirect)

ऊपर आपने देखा कि आरबीसी के टूटने पर पोरफायरिन और बिलिवर्डिन और अंततः बिलीरुबिन का निर्माण होता हैं। इसे ही इनडायरेक्ट बिलीरुबिन कहा जाता हैं।

सीरम बिलीरुबिन डायरेक्ट (serum bilirubin direct)

जब इनडायरेक्ट बिलीरुबिन प्लाज्मा में एल्ब्यूमिन से बंध कर लिवर में चला जाता हैं और वहाँ एल्ब्यूमिन से अलग होकर ग्लुकुरोनिक एसिड से जुड़ जाता हैं तो उसे डायरेक्ट बिलीरुबिन कहा जाता हैं।

कंजुगेटेड बिलीरुबिन (conjugated bilirubin)

जब बिलीरुबिन लिवर में जाता हैं तो यह ग्लुकुरोनिक एसिड से जुड़ जाता हैं। इस कारण इसे कंजुगेटेड बिलीरुबिन कहते हैं। इसे डायरेक्ट बिलीरुबिन भी कहा जाता हैं।

अनकंजुगेटेड बिलीरुबिन ( Unconjugated bilirubin)

रेटिकुलोएंडोथेलियल सिस्टम में आरबीसी के टूटने से बिलीरुबिन का निर्माण होता हैं। चूंकि यह बिलीरुबिन ग्लुकुरोनिक एसिड से जुड़ा हुआ नहीं है इस कारण इसे अनकंजुगेटेड बिलीरुबिन कहते हैं। इसे इनडायरेक्ट बिलीरुबिन भी कहा जाता हैं।

सीरम बिलीरुबिन (Serum bilirubin)

ब्लड में जब हम सीरम बिलीरुबिन की बात करते हैं तो उपरोक्त दोनों बिलीरुबिन को शामिल किया जाता है जिन्हें टोटल बिलीरुबिन कहा जाता है। ब्लड टेस्ट में टोटल बिलीरुबिन और डायरेक्ट बिलीरुबिन को अलग-अलग टेस्ट किया जाता है जबकि इनडायरेक्ट बिलीरुबिन को हम कैलकुलेशन से प्राप्त कर सकते हैं। आप इसे इस प्रकार से समझ सकते हैं।
फॉर्मूला इस प्रकार है-

इनडायरेक्ट बिलीरुबिन = टोटल बिलीरुबिन - डायरेक्ट बिलीरुबिन

डायरेक्ट बिलीरुबिन = टोटल बिलीरुबिन - इनडायरेक्ट बिलीरुबिन

टोटल बिलीरुबिन = डायरेक्ट बिलीरुबिन + इनडायरेक्ट बिलीरुबिन

बिलीरुबिन टोटल कितना होना चाहिए?

एक वयस्क व्यक्ति में बिलीरुबिन की मात्रा निम्नानुसार होनी चाहिए।
टोटल बिलीरुबिन = 0.2 - 2.0 mg/dl
डायरेक्ट बिलीरुबिन = 0.1 - 0.3 mg/dl
इनडायरेक्ट बिलीरुबिन = 0.1 - 0.7 mg/dl

एक वयस्क व्यक्ति के मुकाबले शिशु में बिलीरुबिन की नॉर्मल रेंज भिन्न भिन्न होती हैं। उम्र के अनुसार यह निम्नानुसार होनी चाहिए।

0 - 1 दिन = 2 - 6 mg/dl
1 - 2 दिन = 6 - 10 mg/dl
3 - 5 दिन = 4 - 8 mg/dl

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शनिवार, अक्तूबर 28

बायोप्सी टेस्ट (biopsy meaning in hindi)

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बायोप्सी क्या है? (biopsy test)

बायोप्सी (biopsy) एक मेडिकल टेस्ट है जिसका सैम्पल संग्रहण आमतौर पर एक सर्जन द्वारा किया जाता है और जाँच का कार्य लैब तकनीशियन और पैथोलॉजिस्ट द्वारा किया जाता हैं। इस प्रक्रिया में संभावित कैंसर की बीमारी की उपस्थिति या स्थिति का पता करने के लिए जांच के लिए नमूना कोशिकाओं या ऊतकों को निकालना और जांच को शामिल किया जाता है।

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बायोप्सी क्यों की जाती है?

बायोप्सी शब्द आमतौर पर कैंसर से जुड़ा शब्द है, लेकिन केवल इसलिए कि आपके डॉक्टर ने बायोप्सी की जांच का कहा है। इसका मतलब यह नहीं है कि आपको कैंसर है।
अधिकांश कैंसर के डॉयग्नोस के लिए बायोप्सी ही एकमात्र तरीका है जो यह बताता है कि कैंसर हैं कि नहीं। सीटी स्कैन और एक्स-रे जैसे इमेजिंग टेस्ट उन क्षेत्रों की पहचान करने में केवल मदद कर सकते हैं, लेकिन वे कैंसरग्रस्त और गैर-कैंसरग्रस्त कोशिकाओं के बीच अंतर नहीं कर सकते हैं।

डॉक्टर बायोप्सी का उपयोग यह जांचने के लिए करते हैं कि आपके शरीर में कोई गांठ कैंसर के कारण हैं या अन्य कारणों से।
उदाहरण के लिए यदि किसी में कोई गांठ है तो एक इमेजिंग टेस्ट गांठ की पुष्टि करेगा, लेकिन बायोप्सी यह निर्धारित करने का एकमात्र तरीका है कि यह गांठ कैंसर युक्त है या नहीं।


बायोप्सी टेस्ट कैसे होता है?

बायोप्सी शरीर के किसी भी प्रभावित हिस्से से ली जा सकती है। ये बायोप्सी सैम्पल आमतौर पर एक सर्जन द्वारा लिया जाता हैं।
बायोप्सी के लिए मरीज के शरीर से प्रभावित स्थान से नीडल द्वारा कोशिकाओं को लिया जाता हैं जिसे FNAC टेस्ट कहा जाता हैं। इसकी एक स्लाइड बनाई जाती हैं और प्रोसेस के बाद स्टैंनिग की जाती हैं जिसे H & E स्टैनिंग कहा जाता हैं। इसके बाद स्लाइड को पैथोलॉजिस्ट द्वारा माइक्रोस्कोप में कोशिकाओं को चेक किया जाता हैं कि वे सामान्य कोशिकाएं हैं या केंसर सेल्स।

दूसरी ओर यदि कोई अंग प्रभावित हैं तो उसका कुछ भाग या कई बार सर्जरी में अंग ही निकाल दिया जाता हैं। उस अंग के कुछ भाग का उत्तक लिया जाता हैं और यह टिश्यू निम्नलिखित प्रक्रिया से गुजरता है।

टिश्यू प्रक्रिया के चरण (stage of tissue processing)
1. फिक्सेशन (FIXATION)
2. डिहाइड्रेशन (DEHYDRATION)
3. क्लीयरिंग (CLEARING)
4. इम्प्रेग्नेशन (IMPREGNATION)
5. एम्बेडिंग (EMBEDDING)
6.माइक्रोटॉमी (MICROTOMY or SECTIONING)
7.स्टैनिंग (STAINING)
8. माउंटिंग (MOUNTING)
9. माइक्रोस्कोपी (MICROSCOPY)

पैथोलॉजिस्ट द्वारा माइक्रोस्कोप में कोशिकाओं को चेक किया जाता हैं कि वे सामान्य कोशिकाएं हैं या केंसर सेल्स।


बायोप्सी की जांच कितने रुपए में होती है (Biopsy Test price) (biopsy test cost)

बायोप्सी टेस्ट की कीमत में एकरूपता नहीं पाई जाती हैं। विभिन्न सरकारी अस्पतालों में इसकी कीमत नाममात्र की होती हैं या निःशुल्क होती हैं। यदि यह जाँच किसी निजी लैब में होती हैं तो लैब दर लैब इसकी कीमत भिन्न भिन्न होती हैं। बायोप्सी की कीमत और समय टिश्यू और बायोप्सी के प्रकार के आधार पर भिन्न भिन्न होती हैं। औसतन बॉयोप्सी जाँच की कीमत 700 रुपये से 1500 रुपये होती हैं।


बायोप्सी की रिपोर्ट कितने दिन में आती है?

ब्लड टेस्ट के मुकाबले इसकी रिपोर्ट प्राप्ति में काफी समय लगता हैं। इसके लिए कुछ कारक जिम्मेदार है।
जैसे-
  • अस्पताल या क्लिनिक में मरीजों का वर्कलोड
  • लैब स्टाफ की उपलब्धता
  • बायोप्सी का प्रकार
  • अंग की संभावित बीमारी
क्योंकि गंभीर बीमारी होने पर रिपोर्ट को और आगे की जाँच की जाती हैं। अगर आपको कोई भी गंभीर बीमारी नहीं है तो बायोप्सी की रिपोर्ट जल्दी भी आ जाती हैं। हालांकि अगर सामान्य रूप से देखा जाए तो सामान्य बीमारी की बायोप्सी रिपोर्ट मिनिमम 4 से 7 दिन में आ जाती हैं और अगर कोई गंभीर बीमारी हैं तो 7 दिन से एक माह का समय लग सकता हैं।



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गुरुवार, अक्तूबर 12

प्लीहा या तिल्ली या स्प्लीन (spleen in hindi)

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प्लीहा (spleen in hindi)

हमारे शरीर का इम्यून सिस्टम लिम्फेटिक सिस्टम का आवश्यक भाग है, जिसमे लिम्फ नलिकाएं, लिम्फ उत्तक और लिम्फ अंगों को शामिल किया गया है। लिम्फ नलिकाएं अंतरकोशिकीय द्रव (Interstitial fluid) या लिम्फ को पेरिफेरल उत्तक (peripheral tissue) से रक्त (blood) में परिवहन का कार्य करती है। लिम्फेटिक उत्तक (Lymphetic Tissue) और लिम्फेटिक अंगों में लिम्फोसाइट्स (lymphosytes) और श्वेत रक्त कोशिकाए (white blood cells) होती है।
प्राथमिक लिम्फेटिक अंगों में थायमस (Thymus) और अस्थि मज्जा (Bone Merrow) को शामिल किया जाता हैं। और द्वितीयक लिम्फेटिक अंगों में Spleen, Tonsils, Lymph nodes और Mucosa associated lymphoid tissue (MALT) को शामिल किया जाता है। इस भाग में हम प्रमुख लिम्फ अंग स्प्लीन के बारे में जानेंगे।




स्प्लीन क्या है? प्लीहा क्या है? (spleen meaning in hindi)

स्प्लीन (spleen) को कई नामों से जाना जाता हैं। जैसे प्लीहा या तिल्ली या स्प्लीन (spleen)
स्प्लीन (spleen) या प्लीहा या तिल्ली हमारे शरीर में 9वीं और 11वीं पसलियों के बीच पेट के ऊपरी बाएं चतुर्थांश में स्थित सबसे बड़ा लिम्फोइड अंग है।

स्प्लीन नार्मल साइज इन हिंदी (spleen normal size in Hindi)

स्प्लीन (spleen) की नॉर्मल साइज 12x7x3cm होती है। जब स्प्लीन के आकार में वृद्धि होती हैं तो मेडिकल भाषा में इसे स्प्लीनोमेगली (splenomegaly) कहा जाता हैं। स्प्लीन बढ़ने के कई कारण है। 
स्प्लीन एक इंट्रापेरिटोनियल अंग है जो स्प्लेनिक हिलम (hilum) को छोड़कर आंत के पेरिटोनियम से घिरा होता है। इसे ढकने वाला रेशेदार कैप्सूल संयोजी ऊतक से बना होता है। कैप्सूल ट्रैबेकुले (trabeculae) नामक अंग में छोटे विस्तार बनाता है।

स्प्लीन की सतह की विशेषताएं

स्प्लीन (spleen) के विपरीत छोर पर anterior and posterior छोर होते हैं। यहाँ दोनों ओर superior and inferior borders देखते हैं। यहां हमारे पास पार्श्व या डायाफ्रामिक सतह है जो उत्तल है जो बाएं हेमिडाफ्राम की समतलता में फिट होती है। और यहां हमारे पास औसत दर्जे की या आंत की सतह है।
आंत की सतह पर तीन छापें (impression) होती हैं -
वृक्क छाप (renal)
गैस्ट्रिक छाप (gastric) और
शूल छाप (colic)

हिलम स्प्लीन धमनी (spleen artery) और स्प्लीन शिरा (spleen vein) के पारित होने की अनुमति देता है। स्प्लीन (spleen) की प्राथमिक रक्त आपूर्ति स्प्लीन (spleen) धमनी से होती है। स्प्लेनिक धमनी शाखाएँ छोटी वाहिकाओं में विभाजित हो जाती हैं जिन्हें ट्रैब्युलर धमनियाँ कहा जाता है।

गैस्ट्रोस्प्लेनिक लिगामेंट हिलम को पेट की अधिक वक्रता से जोड़ता है और स्प्लेनोरेनल लिगामेंट हिलम को बाईं किडनी से जोड़ता है। स्प्लेनिक वाहिकाएं और अग्न्याशय की पूंछ स्प्लेनोरेनल लिगामेंट के भीतर होती हैं। गैस्ट्रोस प्लेनिक लिगामेंट और स्प्लेनोरेनल लिगामेंट के बीच छोटी थैली होती है। ध्यान दें कि स्प्लीन फ्रेनिकोकोलिक लिगामेंट सपोर्ट करती है, जो पेरिटोनियम फोल्ड है जो बृहदान्त्र से निकलती है।

स्प्लीन (spleen) में दो प्रकार के ऊतक होते हैं।
सफेद गूदा (white pulp) और 
लाल गूदा (red pulp)
सफेद गूदा स्प्लीन का मुख्य लिम्फोइड ऊतक है और इसमें रोम (follicles) लिम्फोसाइट्स और प्लाज्मा कोशिकाओं सहित लिम्फोइड तत्व होते हैं। लिम्फोसाइट्स जर्मिनल केंद्रों में निर्मित होते हैं, जो रोम के केंद्र में होते हैं। मैक्रोफेज (Macrophages) सफेद और लाल गूदे दोनों में रहते हैं। लाल गूदा तिल्ली की अधिकांश मात्रा का निर्माण करता है। इसमें लिम्फोसाइट्स और मैक्रोफेज सहित शिरापरक साइनस (venous sinuses) और लसीका कोशिकाओं की डोरियां (cords of lymphatic cells) शामिल होती हैं। जैसे ही रक्त स्प्लीन (spleen) के माध्यम से बहता है, लाल गूदे और सीमांत क्षेत्र के भीतर मैक्रोफेज और डेंड्राइटिक कोशिकाएं टी- और बी-कोशिकाओं में एंटीजन को पकड़ती हैं और पेश करती हैं, जिससे प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया शुरू होती है। अब देखते हैं कि स्प्लीन का क्या काम है?

प्लीहा का कार्य (spleen function)

टी-कोशिकाएं एंटीजन-प्रस्तुत करने वाली कोशिकाओं (antigen-presenting cells) द्वारा प्रस्तुत विशिष्ट एंटीजन को पहचानती हैं। यह टी-कोशिकाओं के सक्रियण और प्रसार को ट्रिगर करता है, जिससे प्रभावकारी टी-कोशिकाओं में उनका विभेदन होता है। ये प्रभावकारी टी-कोशिकाएं अन्य प्रतिरक्षा कोशिकाओं के कार्यों को निर्देशित करके या सीधे हमला करके प्रतिरक्षा प्रतिक्रियाओं का समन्वय करती हैं। बी-कोशिकाएं प्लाज्मा कोशिकाओं में विभेदित होती हैं, जो एंटीबॉडी का उत्पादन और विमोचन (release) करती हैं। एंटीबॉडीज़ एंटीजन से जुड़ते हैं और उन्हें आपके शरीर से निकालने में मदद करते हैं। जिन व्यक्तियों में स्प्लीन (spleen) कार्यशील नहीं है उनमें संक्रमण का खतरा अधिक होता है।

स्प्लीन (spleen) सबसे बड़ा लिम्फोइड अंग और एकमात्र लिम्फोइड अंग है जो मुख्य रूप से लसीका द्रव (lymphatic fluid) के बजाय रक्त को फ़िल्टर करता है। जैसे ही रक्त स्प्लीन (spleen) से गुजरता है, स्प्लीन (spleen) डोरियों के भीतर जालीदार फाइबर (reticular fibers) और मैक्रोफेज सक्रिय रूप से क्षतिग्रस्त, पुरानी या असामान्य लाल रक्त कोशिकाओं, सेलुलर मलबे और विदेशी कणों को परिसंचरण से हटा देते हैं। यह प्रक्रिया स्वस्थ आरबीसी के रखरखाव को सुनिश्चित करती है और असामान्य या क्षतिग्रस्त कोशिकाओं के संचलन को रोकती है।

इसके अतिरिक्त स्प्लीन (spleen) का लाल गूदा प्लेटलेट्स और लाल रक्त कोशिकाओं के लिए एक भंडार के रूप में कार्य करता है, जो उन्हें बढ़ी हुई मांग के समय, जैसे कि रक्तस्राव या चोट के मामलों में, थक्का निर्माण और हिमोस्टेसिस में सहायता के लिए रक्त परिसंचरण में छोड़ता है।

स्प्लीन (spleen) की वाहिका की दीवारों में चिकनी मांसपेशियों का संकुचन, सहानुभूति तंत्रिका तंत्र (sympathetic nervous system) संकेतों द्वारा सुगम, संग्रहीत एरिथ्रोसाइट्स को रक्तप्रवाह में वापस भेजता है एरिथ्रोसाइट होमियोस्टेसिस के रखरखाव में सहायता करता है और पर्याप्त ऑक्सीजन वितरण सुनिश्चित करता है। स्प्लीन का टूटना (Splenic rupture) एक चिकित्सीय आपात स्थिति है, जिसमे आंतरिक रक्तस्राव जीवन को खतरे में डाल सकता है।

लाल गूदे की स्प्लेनिक डोरियाँ (splenic cords) बड़ी मात्रा में मैक्रोफेज के महत्वपूर्ण भंडार हैं। गंभीर चोट लगने पर, स्प्लीन (spleen) बड़ी मात्रा में मोनोसाइट्स छोड़ता है, जो सूजन को नियंत्रित करने और ऊतक उपचार की सुविधा के लिए रक्तप्रवाह के माध्यम से चोट की जगह पर जाते हैं।


यद्यपि भ्रूण के विकास के दौरान हिमेटोपोइसिस (hematopoiesis) की प्राथमिक साइट स्प्लीन (spleen) से अस्थि मज्जा में स्थानांतरित हो जाती है, लेकिन कुछ परिस्थितियों में स्प्लीन (spleen) अपनी हेमटोपोइएटिक क्षमता hematopoietic capacity बरकरार रखती है। कुछ हेमटोलॉजिकल विकारों या स्थितियों में जहां अस्थि मज्जा के कार्य से समझौता किया जाता है, स्प्लीन (spleen) अपनी हेमटोपोइएटिक भूमिका फिर से शुरू कर सकती है। इन स्थितियों के तहत, स्प्लीन (spleen) के भीतर हेमेटोपोएटिक स्टेम कोशिकाएं विभिन्न रक्त कोशिका वंशों blood cell lineages में विभेदित होती हैं, जो एरिथ्रोसाइट्स, ग्रैन्यूलोसाइट्स और प्लेटलेट्स का उत्पादन करती हैं।

स्प्लीन (spleen) प्रणालीगत होमियोस्टैसिस (systemic homeostasis) और चयापचय विनियमन (metabolic regulation) में भी योगदान देता है। लौह चयापचय (iron metabolism) में इसकी भूमिका होती है, हीमोग्लोबिन के टूटने से प्राप्त लौह को फैगोसाइटोज्ड एरिथ्रोसाइट्स में संग्रहित किया जाता है ताकि इसे पुनर्चक्रित किया जा सके। इस संग्रहित आयरन को बढ़ी हुई मांग के समय, जैसे एरिथ्रोपोएसिस या आयरन की कमी, के दौरान जुटाया जा सकता है, जिससे लाल रक्त कोशिका उत्पादन के लिए एक स्थिर आपूर्ति सुनिश्चित होती है।

स्प्लीन या तिल्ली बढ़ने के लक्षण

स्प्लीन या तिल्ली बढ़ने के आमतौर पर कोई लक्षण दिखाई नहीं देते हैं, लेकिन कभी-कभी तिल्ली में सूजन के लक्षण निम्न हो सकते हैं।
  • ऊपरी बाएं भाग में पेट में दर्द
  • बिना खाए या थोड़ा सा खाने के बाद पेट भरा हुआ महसूस होना
  • लाल रक्त कोशिकाएं की संख्या में कमी
  • एनीमिया
  • मलेरिया

स्प्लीन बढ़ने के कारण

कई प्रकार के संक्रमण और बीमारियाँ प्लीहा के आकार में वृद्धि का कारण बन सकती हैं।
  • विषाणु संक्रमण
  • बैक्टीरिया का संक्रमण
  • परजीवी संक्रमण
  • मलेरिया
  • लिवर सिरोसिस
  • एनीमिया
  • ल्युकिमिया

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