क्रॉस मैच क्या है?
जब किन्हीं दो व्यक्तियों का रक्त एक ही प्रकार का होता है, अर्थात ब्लड ग्रुप (Blood Group) एक ही होता है तो समझा जाता है कि दोनों व्यक्ति एक-दूसरे को रक्तदान कर सकते हैं।
किसी भी व्यक्ति द्वारा रक्तदान करना सुरक्षित है या नहीं इसके लिए केवल समान ब्लड ग्रुप का होना ही पर्याप्त नहीं है बल्कि कंपैटिबल होना आवश्यक है।
रक्तदान कर सकने के लिए जो जांच की जाती है, उसे कंपैटिबिलिटी टेस्ट ( Campaitibility test ) या क्रोसमैच (Cross Match) कहा जाता है।
चूंकि कई बार रक्तदाता (Doner) के सिरम में या फिर रक्तग्राही (recipient) के सिरम में एंटीबॉडी (antibodies) होती है जो कि मरीज में खून चढ़ाने के बाद समस्या उत्पन्न कर सकती है।
Blood Group की जांच करते समय या पढ़ने में या फिर रिपोर्टिंग में अगर गलती हो जाती है तो व्यक्ति की जान पर बन आती है। इससे बचने के लिए प्रयोगशाला में (In vitro) दोनों व्यक्तियों के ब्लड को इस तरीके से मिलाया जाता है और देखा जाता है कि यदि व्यक्ति को वह ब्लड चढ़ा दिया जाता है तो समस्या उत्पन्न हो सकती है या नहीं। यद्यपि व्यक्ति को रक्ताधान करने पर उत्पन्न होने वाली सभी समस्याओं या रिएक्शन को एक जांच द्वारा निर्धारित नहीं किया जा सकता हैं और यह व्यक्ति विशेष पर निर्भर करता है कि उनका शरीर चढ़ाये गए रक्त के प्रति क्या प्रतिक्रिया व्यक्त करता हैं।
क्रॉस मैच और इसके प्रकार (major and minor cross-matching)
इसमें रक्तदाता (Doner) और रक्तग्राही (recipient) दोनों का रक्त क्रॉस चेक किया जाता है, इस कारण इसको क्रॉस मैच का जाता है।
क्रॉस मैच दो प्रकार का होता है जिसे
(1) मेजर क्रॉस मैच (major cross-match)
(2) माइनर क्रॉस मैच (minor cross-match)
आप जानते हैं कि रक्त के दो भाग होते हैं। ठोस भाग रक्त कोशिकाओं (Cells) का होता है जिसमें RBC, WBC और Platelets होते हैं जबकि द्रव भाग सीरम/प्लाज्मा का होता हैं।
मेजर क्रॉस मैच में रक्तदाता (Doner) के लाल रक्त कणिका (RBC) और रक्तग्राही (recipient) के सीरम को मिलाकर जांच की जाती है वही माइनर क्रॉस मैच में रक्तग्राही (recipient) की लाल रक्त कणिका (RBC) और रक्तदाता (Doner) के सिरम को मिलाकर जाता जाता है।
क्रॉस मैच जांच के चरण
1. Saline cross matching
इस चरण में मुख्य रूप से Normal saline का उपयोग होता हैं इस कारण इसे saline phase कहा जाता हैं। इसके द्वारा व्यक्ति के रक्त में मौजूद कोल्ड एंटी बॉडी ( Cold antibodies) का पता लगाए जा सकता है।
2. Tharmo Phase
दूसरा चरण जिसे थर्मों फेस का जाता है। इसमें 22% bovine Albumin का इस्तेमाल किया जाता है और इसे निर्धारित समय तक 37 डिग्री तापमान पर रखा जाता है। इसके द्वारा इम्यून एन्टी बॉडी (Immune antibodies) का पता लगाया जा सकता है।
3. AHG crossmatch procedure
तीसरा चरण हैं जिसे Anti Human Globulin फेज या AHG phase कहा जाता है, इसके द्वारा अन्य ब्लड ग्रुप की एन्टी बॉडी का पता लगाया जा सकता है।
Cross-matching procedure
क्रॉस मैच में गलती की संभावनाएं (Errors in cross matching)
गलत पॉजिटिव रिएक्शन (False positive reaction)
Rouleaux formation: जब RBC सिक्कों की भांति इस दूसरे के ऊपर चढ़ी हुई प्रतीत होती हैं जिसे Rouleaux formation कहते हैं, यह गलत पोसिटिव रिएक्शन का कारण बन सकती हैं।
Cold Agglutination reaction कुछ रक्त कणिकाएँ कुछ सिरम या सभी सिरम के साथ Agglutination करती है इस प्रकार की एंटीबॉडी गलत रिपोर्ट जो कर सकती है।
Cord red cells की उपस्थिति
Autoantibodies की उपस्थिति
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