रविवार, मई 30

क्षय रोग क्या है? क्षय रोग के कारण, लक्षण, प्रकार और डॉट्स प्रणाली

1 comment

क्षय रोग का सामान्यतया टीबी (TB) कहा जाता है। यह माइकोबैक्टेरियम ट्यूबरक्लोसिस (mycobacterium tuberculosis) नामक जीवाणु (bacteria) के कारण होने वाला एक आत्यधिक संक्रामक रोग है।

क्षय रोग या टीबी (TB) शरीर के किसी भी हिस्से को प्रभावित कर सकता है। जब यह फेफड़े को प्रभावित करता है तो इसे फेफड़ों की टीबी यानि पल्मोनरी टीबी (pulmonary TB) कहा जाता है। यह टीबी (TB) का सबसे सामान्य रूप है।

फेफड़ों के अलावा शरीर के किसी अन्य भाग में टीबी को एक्स्ट्रा पलमोनरी टीबी (Extra pulmonary TB) कहा जाता है।


क्षय रोग कैसे फैलता है? (tuberculosis caused by)

टीबी आमतौर पर हवा के माध्यम से फैलती हैं। जब पल्मोनरी टीबी (pulmonary TB) से ग्रसित रोगी खाँसता/छीकता है तो टीबी के जीवाणु हवा में छोटी-छोटी बूंदों के रूप में फैल जाता है। जब यह छोटी बूंदें अन्य स्वस्थ व्यक्ति द्वारा सांस लेने पर ग्रहण कर ली जाती है तो व्यक्ति टीबी से संक्रमित हो जाता है।

यह संक्रमित व्यक्ति अपने जीवनकाल में 10 से 15 लोगों को टीबी का संक्रमण फैला सकता है। एचआईवी (HIV) से संक्रमित रोग में जोखिम 10%  हर साल बढ़ जाता है। अन्य कारणों जैसे- मधुमेह, धूम्रपान, शराब की लत, कुपोषण आदि से भी टीबी का संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है।

टीबी का बैक्टीरिया

टीबी हवा द्वारा फैलने वाला संक्रामक रोग है जो मुख्य रूप से माइक्रोबैक्टेरियम ट्यूबरक्लोसिस (mycobacterium tuberculosis) बैक्टीरिया द्वारा होता है जिसको पहली बार 1882 में रॉबर्ट कोच द्वारा खोजा गया था।  

क्षय रोग माइक्रोबैक्टेरियम की कई प्रजातियों में से एक बैक्टीरिया माइक्रोबैक्टेरियम ट्यूबरक्लोसिस काम्प्लेक्स प्रजाति का है। माइक्रोबैक्टेरियम ट्यूबरक्लोसिस नॉन मोटाईल (non motile) अर्थात अगतिशील छड़ाकर बैक्टीरिया है जो 2-4 माइक्रोमीटर की लम्बाई का और 0.2-0.5 माइक्रोमीटर होता है।
यह एक ऑब्लिगेट एयरोब्स (obligate aerobes) है अर्थात इनको जिन्दा रहने के लिए ऑक्सिजन की आवश्यकता होती है। इसलिए क्षय रोग के ज्यादातर मामलों में माइक्रोबैक्टेरियम ट्यूबरक्लोसिस हमेशा फेफड़ों के ऊपरी भाग में पाया जाता है।

यह जीवाणु एक विशिष्ट अंतःकोशिकीय परजीवी है जो आमतौर पर मेक्रोफेस के अंदर 15-20 घंटे में धीमी गति से बढ़ता है। टीबी के बैक्टीरिया कोशिका की सरंचना में मुख्य रूप से माइकोलिक एसिड की उपस्थिति के कारण इसकी कोशिका की सतह पर मोम की परत होती है।

यह परत कोशिकाओं में स्टेनिंग करने में मदद करती है। यहां पर जिल्ड नेल्सन स्टैंन (Ziehl-Neelson stain) या फ्लोरोसेंस स्टैंन (Fluorescent stain) जैसी स्टैनिंग तकनीक माइक्रोस्कॉपी में बैक्टीरिया को देखने के लिए उपयोग में किए जाते हैं।

टीबी का प्राथमिक संक्रमण

मानव शरीर में टीबी के जीवाणु के प्रवेश और स्थापना से प्राथमिक संक्रमण होता है। संक्रमण के स्थापना और लक्षण अभिव्यक्ति के लिए आमतौर पर 6-8 सप्ताह लगते है। 

पॉजिटिव ट्यूबरकुलीन त्वचा परीक्षण (tuberculin skin test) यानि मोंटेक्स टेस्ट प्राथमिक संक्रमण को दर्शाता है।
टीबी को मुख्य रूप से दो भागों में बांटा गया है-

फेफड़ों का टीबी (pulmonary tuberculosis)

पल्मोनरी (pulmonary) यानी फेफड़ों का टीबी बलगम में माइक्रोबैक्टेरियम ट्यूबरक्लोसिस बैक्टीरिया की उपस्थिति जिसे माइक्रोबायोलोजिकल कन्फ़र्म टीबी और  क्लिनिकली डायग्नोस्टिक टीबी को शामिल किया गया है।

फेफड़ों के बाहर का क्षय रोग (Extra-pulmonary tuberculosis)

फेफड़ों के अलावा शरीर के अन्य किसी भी हिस्से में टीबी का सक्रिय होना एक्स्ट्रा पल्मोनरी ट्यूबरक्लोसिस (Extra-pulmonary tuberculosis) कहलाता है।

ऐसे मामलों में उपचार और निदान का निर्णय केवल चिकित्सा अधिकारी द्वारा किया जाता है। प्लूरल फ्यूशंस (pleural effusion) भी एक प्रकार का एक्स्ट्रा पल्मोनरी ट्यूबरक्लोसिस है।

संक्रमण का प्रसार रोकने के लिए स्वास्थ्य कर्मचारियों को यथाशीघ्र संभावित यानी presumptive टीबी मामले की पहचान करनी चाहिए। यदि व्यक्ति में दोनों यानी एक्स्ट्रापल्मोनरी और पल्मोनरी देखे जाते हैं तो उसे पल्मोनरी टीबी कहा जाता है।


टीबी रोग के लक्षण (tuberculosis symptoms)


संभावित पल्मोनरी टीबी (presumptive pulmonary TB) के लक्षण

  • सप्ताह से अधिक खांसी
  • सप्ताह से अधिक बुखार
  • असामान्य रूप से वजन में कमी
  • हेमोप्टीसिस यानी बलगम में खून आना
  • असामान्य छाती का एक्सरे

यदि इनमें से कोई भी लक्षण दिखता है तो पल्मोनरी टीबी कहा जाता है।


संभावित एक्स्ट्रापल्मोनरी टीबी (presumptive extra pulmonary TB) के लक्षण

1.     विशिष्ट अंगों के लक्षणों की उपस्थिति जैसे-

2.     लिम्फनोड की सूजन

3.     जोड़ों में दर्द-सूजन

4.     गर्दन में अकड़न

5.     भटकाव जैसे लक्षण आदि और

6.     संवैधानिक लक्षण जैसे असामान्य रूप से वजन का कम होना

7.     सप्ताह से अधिक लगातार बुखार

8.     रात्रि के समय पसीना आना आदि।

 

डॉट्स (DOTS) क्या है?

टीबी का उपचार / इलाज के लिए DOTs पद्दति को अपनाया गया है। NTEP टीबी के नियंत्रण के लिए अंतरराष्ट्रीय रूप से अनुशंसित डॉट्स (DOT- Directly Observed Treatment short course) रणनीति पर आधारित है।

डॉट्स प्रदाता आमतौर पर एक स्वास्थ्य कार्यकर्ता या सामुदायिक स्वयंसेवक होता है और कुछ परिस्थितियों में परिवार का एक सदस्य जो DOT (Directly Observed Treatment) को प्रदान करते है एवम जो रोगी के लिए सुलभ और स्वीकार्य है।

अध्ययनों में पाया गया है कि एक तिहाई रोगी नियमित रूप से दवाओ का सेवन नहीं करते है। डॉट्स एक सहायक पद्दति है जो टीबी के इलाज में सर्वोत्तम परिणाम सुनिश्चित करता है।

इसमे डॉट्स प्रदाता रोगी को ट्रीटमेंट लेने में मदद करता है। बहुत से मरीज जो डॉट्स के माध्यम से दवाई नहीं लेते है वो बीच में ही आराम महसूस करने पर स्वयं दवाई लेना बंद कर देते है। डॉट्स प्रदाता रोगी के दवाई की हर खुराक का निगरानी के तहत ट्रीटमेंट सुनिश्चित करता है।

राष्ट्रीय क्षय रोग रोग उन्मूलन कार्यक्रम

भारत सरकार द्वारा राष्ट्रीय क्षय रोग कार्यक्रम (NTP) सन 1962 में लागू किया गया था जिसके तहत जिला क्षय केन्द्रों, टीबी क्लीनिक और टीबी अस्पतालों की स्थापना की गई थी।

कार्यक्रम के आरंभ में राष्ट्रीय क्षय रोग कार्यक्रम यानी एनटीपी (National tuberculosis program) को सामान्य स्वास्थ्य सेवा और सेवाओं की वितरण हेतु प्राथमिक स्वास्थ्य आधारित सरंचना के साथ एकीकृत किया गया था,

किंतु राष्ट्रीय क्षय नियंत्रण कार्यक्रम के परिणाम उत्साहजनक ना होने के कारण 1992 में पुनः एनटीपी की समीक्षा कर नई रूपरेखा बनाई गई जिसके बाद सन 1997 में पुनरीक्षित नेशनल टीबी कंट्रोल प्रोग्राम यानि रिवाइज नेशनल ट्यूबरक्लोसिस कंट्रोल प्रोग्राम यानि आरएनटीसीपी (RNTCP) के नाम से लागू किया गया। जिसमें संपूर्ण देश को वर्ष 2005 तक आरएनटीसीपी के अंतर्गत लाने की योजना थी।

इसके पश्चात मार्च 2006 में आरएनटीसीपी (RNTCP) के माध्यम से पूरे देश को सम्मिलित किया गया। 1 जनवरी 2020 को इस कार्यक्रम का नाम आरएनटीसीपी से बदलकर एनटीईपी (NTEP) यानी राष्ट्रीय क्षय उन्मूलन कार्यक्रम कर दिया गया।

विश्व स्वास्थ्य संगठन यानी डब्ल्यूएचओ द्वारा रोग को सन 1993 में वैश्विक आपातकाल यानी ग्लोबल इमरजेंसी घोषित किया गया।

If You Enjoyed This, Take 5 Seconds To Share It

1 टिप्पणी: