रविवार, मई 23

रक्त और रक्त के भाग (Blood and blood components)

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रक्त (Blood) एक तरल संयोजी उत्तक होता है जो कि शरीर में विभिन्न पदार्थों का आवागमन विभिन्न धमनियों और शिराओं के माध्यम से करता है। रक्त का पीएच 7.4 होता है। रक्त के 2 मुख्य भाग होते हैं जिसमें एक भाग कोशिकाओं (Cells) का होता है और दूसरा भाग तरल पदार्थ का होता हैं। 

कोशिकाओं में तीन प्रकार की कोशिकाएं पाई जाती है।

(1) लाल रक्त कोशिकाएं (RBC)

(2) श्वेत रक्त कोशिकाएं (WBC)

(3) प्लेटलेट्स (Platelets)


प्लाज्मा (Plasma)

यह सभी रक्त कोशिकाएं एक तरल में तैरती रहती है, जिसे प्लाज्मा (Plasma) कहा जाता है। यह कुल रक्त का 55% होता है और 45% भाग कोशिकाओं का होता है। प्लाज्मा में एक घुलनशील प्रोटीन होता है जिसे फाइब्रिनोजन (fibrinogen) कहते हैं। रक्त के जमने पर यह फाइब्रिनोजन प्लाज्मा से हटा लिया जाता है, जिसके कारण एक तरल पदार्थ बचा रहता है उसे सिरम (Serum) कहा जाता है। 



विभिन्न बायोकेमिस्ट्री टेस्ट और सीरोलॉजी के टेस्ट के लिए सीरम का उपयोग किया जाता है। लैब में प्लाज्मा प्राप्त करने के लिए किसी anticoagulant वाली ट्यूब में रक्त का संग्रहण किया जाता हैं। बिना anticoagulant वाली ट्यूब में रक्त संग्रह करने पर तरल पदार्थ के रूप में सीरम की प्राप्ति होती हैं। सिरम या प्लाज्मा में विभिन्न प्रकार की प्रोटीन, एंटीबॉडी, पोषक तत्व घुले रहते हैं।


रक्त कोशिकाओं का आकार (Size)

प्लेटलेट रक्त में पाई जाने वाली सबसे छोटी कोशिका होती है। लाल रक्त कणिकाएं मध्यम और श्वेत रक्त कणिकाएं सबसे बड़ी कोशिकाएं होती है।

श्वेत रक्त कणिकाएं  > लाल रक्त कणिकाएं  > प्लेटलेट

रक्त कोशिकाओं की मात्रा (blood cells count)

इनमें लाल रक्त कणिकाएं सर्वाधिक मात्रा में उसके पश्चात प्लेटलेट और अंत में सबसे कम मात्रा श्वेत रक्त कणिकाओं की होती है।

लाल रक्त कणिकाएं  > प्लेटलेट  > श्वेत रक्त कणिकाएं


लाल रक्त कोशिकाएं (RBC)

लाल रक्त कोशिकाएं जिन्हें इरीथ्रोसाइट (Erithrocytes) भी कहा जाता हैं। एरिथ्रो यानी लाल और साइटोस सेल से बना शब्द है जिसका अर्थ होता है, कोशिकाएं अर्थात इन्हें लाल रक्त कोशिकाएं भी कहते हैं। रक्त का लाल रंग इन कोशिकाओं में पाए जाने वाले एक वर्णक हिमोग्लोबिन (Haemoglobin) के कारण होता है। यह ऑक्सीजन के परिवहन के साथ-साथ और कई कार्य करती हैं। इसका निर्माण इरीथ्रोपोइसिस ( Erithropoisis) के द्वारा होता है। इनका  जीवन काल औसतन 120 दिन का होता है। उसके पश्चात यह नष्ट हो जाती है। और इसमें पाए जाने वाला पदार्थ यथा आयरन, प्रोटीन आदि पुनः उपयोग में ले लिए जाते हैं।

लाल रक्त कोशिकाएं (RBC) केंद्र विहीन कोशिकाएं होती है किंतु जब यह शिशु अवस्था में होती है तब इसमें केंद्रक पाया जाता है जिसे रेटिक्यूलॉसाइट (Reticulocyte) कहा जाता है। 

RBC कोशिका (biconcave) होती है जो 7 माइक्रोमीटर की होती हैं। इसमें पाया जाने वाला हिमोग्लोबिन ऑक्सीजन के परिवहन के लिए काम करता है। जो फेफड़ों से विभिन्न उत्तकों में ऑक्सीजन का परिवहन करता है और वहां से कार्बन-डाइ-ऑक्साइड का परिवहन फेफड़ों तक करता है। 

एक लाल रक्त कणिका के अंदर द्रव पदार्थ 0.85% सोडियम क्लोराइड की सान्द्रता के बराबर होता है। अर्थात यदि लाल रक्त कणिकाओं को पानी में गिरा दिया जाता है तो पानी लाल रक्त कणिका के अंदर चला जाएगा जिसके कारण वह फूलकर endosmosis के कारण फट जाएगी इसे हिमोलाइसिस (Haemolysis) कहा जाता है। इसी प्रकार यदि लाल रक्त कणिकाओं को सोडियम क्लोराइड के 2% विलियन में डाल दिया जाता है तो लाल रक्त कणिका के अंदर मौजूद द्रव्य पदार्थ बाहर आ जाएगा उसके कारण यह सिकुड़ जाएगी जिसे एग्जॉस्मोसिस (exosmosis) कहा जाता है। 

लाल रक्त कणिकाओं के सतह पर एंटीजन पाए जाते हैं जिसके कारण ब्लड ग्रुप (blood group) का निर्धारण किया जा सकता है।


श्वेत रक्त कोशिकाओं (WBC)

ल्यूकोसाइट या श्वेत रक्त कोशिकाओं को 'ल्यूको' यानी सफेद और 'साइट' यानी सेल्स या कोशिका के कारण श्वेत रक्त कोशिकाएं कहा जाता हैं। इन कोशिकाओं का मुख्य कार्य शरीर की सुरक्षा का होता है। 

यह कोशिकाएं केंद्रक वाली कोशिकाएं होती है जिसका केंद्रक एकल या लोब में बटा हुआ होता हैं। इसका निर्माण ल्यूकोपोईसिस ( Lycopoisis) के अंतर्गत होता है।

इसमें तीन प्रकार की कोशिकाओं का निर्माण होता है।  

ग्रेन्यूलोसाइट्स (Granulocytes)

लिंफोसाइट (Lymphocytes) 

मोनोसाइट (Monocytes)


ग्रेन्यूलोसाइट (Granulocytes) में तीन प्रकार की कोशिकायें होती हैं। 

न्यूट्रोफिल (Neutrophils)

इओसीनोफिल (eosinophils)

बेसोफिल (Basophil)

इन सभी कोशिकाओं के साइटोप्लाज्म में ग्रेन्यूल्स या कण पाए जाते हैं जिसके कारण इन्हें ग्रेन्यूलोसाइट कहा जाता है। 

न्यूट्रोफिल को पॉलीमोरफोन्यूक्लियर सेल भी कहा जाता है। इनका मुख्य कार्य को फेगोसाइटोसिस (phagocytosis) का होता है। जब इनकी संख्या सामान्य से अधिक हो जाती है तो इसे न्यूट्रोफीलिया कहा जाता है। इसी प्रकार यदि इसकी मात्रा सामान्य से कम हो जाती है या तो इसे न्यूट्रोपिनिया कहा जाता है। न्यूट्रोफिल में केंद्रक कई भागों में बटा हुआ होता है जो 3 से 7 तक हो सकता है। कुछ न्यूट्रोफिल में केंद्रक दो भागों में बटा होता है जिसे बैंड न्यूट्रोफिल कहा जाता है। 

ग्रेन्यूलोसाइट (Granulocytes) की अन्य दो कोशिकाओं को इओसीनोफिल और बेसोफिल कहा जाता है। यह हमारे शरीर में हिस्टामिन और हिपेरिन के द्वारा सुरक्षा का कार्य करती है।

श्वेत रक्त कोशिकाओं (WBC) में चौथे प्रकार की सेल को लिंफोसाइट कहा जाता है। इसके साइटोप्लाज्म में ग्रेन्यूल्स या कणों की अनुपस्थिति होती है। किंतु इसका न्यूक्लियस या केंद्रक गोलाकार और कोशिका के अधिकतम भाग को घेरे हुए रखता है। शरीर में विभिन्न प्रकार की एंटीबॉडी का निर्माण लिंफोसाइट द्वारा किया जाता है। श्वेत रक्त कोशिकाओं में अंतिम प्रकार की कोशिका को मोनोसाइट कहा जाता है। रक्त में पायी जाने वाली सभी कोशिकाओं में यह सबसे बड़ी कोशिका होती है। चुंकि श्वेत रक्त कोशिकाओं (WBC) पांच प्रकार की होती है अत: इन सभी कोशिकाओ का जीवनकाल अलग अलग समय का होता है।  

प्लेटलेट्स (Platelets)

रक्त में तीसरे प्रकार की कोशिका को प्लेटलेट्स कहा जाता है। प्लेटलेट्स को थ्रोम्बोसाइट्स (Thrombocytes) भी कहते हैं। यह रक्त कोशिकाओं में सबसे छोटी कोशिका होती है। इनका  जीवन काल औसतन 1-3 दिन का होता है। इसका मुख्य कार्य रक्त का थक्का बनाने में होता है। जब शरीर में कही चोट लग जाती हैं तो यह रक्त का थक्का बनाने में और खून को बहने से रोकने में बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। कई बीमारियों जैसे डेंगू, मलेरिया आदि में इनकी कमी होने पर खतरनाक स्थिति बन जाती है।


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