गुरुवार, अक्तूबर 21

पिट्यूटरी ग्रन्थि (Pituitary Gland) और हॉर्मोन

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पीयूष ग्रन्थि या पिट्यूटरी ग्रन्थि (Pituitary Gland)

पीयूष ग्रन्थि या पिट्यूटरी ग्रन्थि Reddish gray रंग की अण्डाकार ग्रन्थि होती है जो sphenoid bone की सैला टर्सिका (sella turcica) केविटी में स्थित होती है। इसे हाइपोफाइसिस भी कहा जाता हैं।

यह इनफन्डीबुलम नामक एक तंग बूंत (stalk) द्वारा मस्तिष्क के हाइपोथैलेमस (hypothalamus) से जुड़ी रहती है। इसका व्यास लगभग 1.3 सेमी होता है तथा पुरुष में इसका भार 0.5 ग्राम से 0.6 ग्राम तथा महिला में 0.6 से 0.7 ग्राम तक होता हैं।

पीयूष ग्रन्थि तन्त्रिकीय एवं अन्तःसावी तन्त्रों के बीच घनिष्ठ संरचनात्मक एवं कार्यात्मक संयोजन करने वाला केन्द्रीय अंग है। एक ओर यह स्वयं मस्तिष्क के हाइपोथैलेमस द्वारा नियंत्रित है तथा दूसरी ओर यह प्रमुख अन्तःस्रावी ग्रंथियो का नियंत्रण करती है।

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 क्या पीयूष ग्रन्थि को मास्टर ग्रन्थि (Master gland) कहते हैं?
पीयूष ग्रन्थि की स्थिति ही इसे सर्वोच्च महत्त्व का अंग प्रमाणित करती है। इसके हॉर्मोन्स शरीर की वृद्धि, लैंगिक लक्षणों एवं जनन, विकास एवं सामान्य आचरण का ही नहीं, वरन् अन्य महत्त्वपूर्ण अन्तःस्रावी ग्रंथियो के स्त्रवण का भी नियंत्रण करते हैं।

चूंकि यह शरीर को लगभग सभी प्रक्रियाओं एवं अन्य अन्तःस्रावी ग्रंथियो को नियंत्रित व प्रभावित करती है, अत: इसे मास्टर ग्रंथि (master gland) व ऑरकेस्ट्रा का लीडर (leader of the orchestra) के उपनामों से भी जाना जाता रहा है। लेकिन अब यह ज्ञात हो गया है कि यह ग्रन्थि व अन्य प्रन्थियाँ मस्तिष्क के हाइपोथैलेमस (hypothalamus) भाग से नियंत्रित होती है इसीलिए अब पीयूष ग्रन्थि को मास्टर ग्रन्थि नहीं कहा जाता हैं।



पीयूष ग्रन्थि को संरचना व कार्य के आधार पर दो भागों में बांटा गया है।

1. ऐडीनोहाइपोफाइसिस (Adenohypophysis or Anterior Lobe)

पीयूष ग्रन्थि के anterior lobe को ऐडीनोहाइपोफाइसिस (adenohypophysis) कहते है। पीयूष ग्रन्थि का 75% भाग ऐडीनोहाइपोफाइसिस में होता है। इसकी उत्पत्ति embryonic pharyngeal region के एक्टोडर्म (ectoderm) के outgrowth द्वारा होती है जिसे राथ के कोष्ठ (Rathke's pouch) कहते हैं। यह भाग हाइपोथैलेमस (hypothalamtus) से रूधिर वाहिकाओं के एक तंत्र के द्वारा जुड़ा रहता है।

पिट्यूटरी ग्रन्थि का उद्गम दोहरा (dual) होता है तथा इसके दोनों घटक (components) एक्टोडर्म से उत्पन्न होते हैं। इन्हें ऐडीनोहाइपोफाइसिस (ndenohypophysis) तथा न्यूरोहाइपोफाइसिस (neurohypophysis) कहते हैं।

ऐडोनोहाइपोफाइसिस मुखगुहा की छत (roof) से एक वृद्धि (outgrowth) के रूप में उत्पन्न होता है जिसे 'राथके कोष्ठ' (Rathke's pouch) कहा जाता है। इसकी उत्पत्ति अग्रमस्तिष्क में डायनसेफेलॉन (diencephalon) के तल (floor) से एक वृद्धि (down growth) के रूप में होती है।

ऐडीनोहाइपोफाइसिस का मुख से सम्बन्ध शीघ्र ही समाप्त हो जाता है जबकि तंत्रिका हाइपोफ़ाइसिस मस्तिष्क से एक कोषक (infundibular) अथवा पिट्यूटरी वृत (pituitary stalk) द्वारा संलग्न रहता है। 

राथके कोष्ठ की अग्र दीवार से पार्स एंटीयर अथवा पार्स डिस्टेलिस (pars distales), ऊपर से पार्स ट्यूबेरिलिस (pars tuberalis) तथा पिछली दीवार से पार्स इंटरमीडिया (pars intermedia) उत्पन्न होता है। रायके कोष्ठ की मुख्य गुहा (cavity) से interglandular cleft निर्मित होता है।

पीयूष ग्रन्थि के इस भाग द्वारा ऐसे हॉर्मोनों को स्त्रावित किया जाता है जो वृद्धि से लेकर जनन तक को क्रियाओं का नियमन करते हैं। दोनों पालियों (lobes) के मध्य छोटा वाहिनिरहित क्षेत्र पाया जाता है जिसे पार्स इन्टरमीडिया (pars intermedia) कहते हैं।


2. न्यूरोहाइपोफाइसिस (Neurohypophysis or Posterior Lobe)

पीयूष ग्रंथि का यह भाग तंत्रकीय बाह्यचर्म (neural ectoderm) के उद्धर्थ (outgrowth) से बने (neurohypophyseal bud) से निर्मित होता है। इसीलिए इस पालि में तंत्रिकाओं (neurons) के एक्सॉन या तंत्रिकाक्ष (axon) के छोर पाये जाते हैं जबकि इन कोशिकाओं की काम हाइपोलेमस में पायी जाती है। ये तंत्रिकोशिकाएं (neurons), तंत्रिकास्त्रावी कोशिकाएं (neurosecretory cells) कहलाती है। यह पालि पिट्यूसाइट्स (pituicytes) से बनी होती है।

वास्तव में न्यूरोहाइपोफाइसिस (neurohypophysis) अन्तःस्रावी ग्रन्थि नहीं है, क्योंकि यह हॉमोने संश्लेषण नहीं करती, बल्कि दो हॉर्मोनों को संचित व मुक्त (store and release) करती है।


पीयूष ग्रन्थि (pituitary glands) के 6 भाग होते हैं।

अ) ऐडीनोहाइपोफाइसिस के 3 भाग होते हैं।

1. पोर्स डिस्टेलिस (Pars distalis)
2. पार्स ट्यूबेलिस (Pars Tubaralis)
3. पार्स इन्टरमीडिया (Pars Intermedia)


(ब) न्यूरोहाइपोफाइसिस (neurohypophysis) के तीन भाग होते हैं।

4. पार्स नर्वोसा (Pars Nervosa)
5. मध्य इमिनेंस (Pars (Eminence)
6. इन्फन्डिबुलम (Infundibulum)


ऐडिनोहाइपोफाइसिस द्वारा स्त्रावित हॉर्मोन (Hormones Secreted by Adenohypophysis)

1. सोमेटोट्रॉपिन अथवा वृद्धि हॉर्मोन (Somatotropin or Growth Hormone, GH)

2. प्रोलेक्टिन अथवा लैक्टोजेनिक अथवा ल्यूटिओट्रॉपिक हॉर्मोन (Prolactin or Luteotropic Hormone, LTH)

3. थाइरॉइड प्रेरक हॉर्मोन अथवा थायरोट्रॉपिन (Thyroid Stimulating Hormone or Thyrotropin, TSH)

4. एडिनोकॉर्टिकोट्रॉपिक हॉर्मोन (Adrenocorticotropic Hormone, ACTH)

5. गोनेडोट्रॉपिक हॉरमोन ये दो प्रकार के होते हैं-

(i) ल्यूटिनाइजिंग हॉरमोन अथवा अन्तराली कोशिका प्रेरक हॉरमोन 
     (Lutenizing Hormone, LH or Interstitial Cell Stimulating Hormone, ICSH) 
(ii)  फॉलिकल स्टिमुलेटिंग हॉर्मोन (Follicle Stimulating Hormone. FSH)

6. मैलेनोसाइट उद्दीपक हॉर्मोन (Melanocyte Stimulating Hormone, MSH) इनमें से वृद्धि हॉर्मोन MSH व प्रोलेक्टिन (Prolactin. PRL) के अतिरिक्त सभी अन्य साव, ट्रॉपिक हॉमोन (tropic trop = turn on) कहलाते हैं जिसका अर्थ है कि ये अन्य अन्तःस्त्रावी ग्रन्थियों इनमें से वृद्धि हॉमॉन (growth hormone), मेलेनोसाइट प्रेरक हॉरमोन (Melanocyte stimulating Blands) को प्रेरित (stimulate) करते हैं।

1. वृद्धि हॉमोन अथवा सोमेटोट्रॉपिन (Growth Hormone or Somatotropin) 

यह क्रिस्टलीय प्रोटीन (crystalline protein) होता है। यह एसिडोफिल (acidophil) कोशिकाओं द्वारा स्रावित किया जाता है। यह हॉर्मोन, शरीर की विभिन्न क्रियाओं को निम्न प्रकार से प्रभावित करता है।
  1. यह शारीरिक वृद्धि को नियंत्रित करता है।
  2. यह कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन तथा वसा उपापचय का नियमन करता है और डी.एन.ए., आर.एन.ए. व प्रोटीन संश्लेषण का उद्दीपन (stimulation) करता है। इसके फलस्वरूप दैहिक कोशिकाओं में सर्वाधिक वृद्धि शिशुअवस्था के प्रथम वर्षों में होती है। तत्पश्चात् युवावस्था तक धीमी गति से वृद्धि होती रहती है। शरीर में वृद्धि, अस्थियों की लम्बाई तथा कोमल ऊतकों, पेशियों तथा त्वचा आदि के परिमाण में वृद्धि द्वारा होती है।
  3. यह हॉर्मोन, अग्न्याशय के इन्सुलिन एवं ग्लूकागॉन के स्रावण को उद्दीपित करता है।
  4. वृद्धि हॉर्मोन से नाइट्रोजन उत्सर्जन व मूत्र निष्कासन में वृद्धि होती है।
  5. यह रक्ताणुओं की उत्पत्ति (origin) को भी प्रभावित करता है।
  6. इस हॉर्मोन के द्वारा जन्तुओं के दुग्ध स्रावण में भी वृद्धि होती है।

2. प्रोलेक्टिन अथवा लैक्टोजनिक हॉरमोन अथवा ल्यूटिओट्रोपिक हॉरमोन (Prolactin or Lactogenic Hormone or Luteotropic Hormone) 

यह एक पेप्टाइड (peptide) हॉरमोन है जो एसिडोफिल कोशिकाओं द्वारा स्रावित होता है। यह हॉरमोन गर्भावस्था (pregnancy) तथा दुग्धस्त्रावण (lactation) के समय स्रावित किया जाता है।

ल्यूटिनाइजिंग हॉर्मोन (Lutenizing hormone, LH) के साथ यह कॉपस ल्यूटियम (corpus luteurn) द्वारा प्रोजेस्टेरॉन के स्रावण को एवं एस्ट्रोजन के साथ यह स्तन ग्रन्थियों की वृद्धि को प्रभावित करता है। एपिनैफ्रिन (epinephrine) एवं नॉरएपिनैफ्रिन (norepinephrine), प्रोलेक्टिन की मोचक क्रियाओं को संदमित करते हैं तथा एस्ट्रोजन व प्रोजेस्टरोन, मोचक क्रिया को उत्तेजित करते हैं।

3. थाइरॉइड प्रेरक हॉर्मोन अथवा थायरोट्रोपिन (Thyroid Stimulating Hormone of Thyrotropin, TSH)

यह एक ग्लाइकोप्रोटीन (glycoprotein) होता है। यह क्षारकरंजी (basophil) कोशिकाओं द्वारा स्रावित किया जाता है। यह थाइरॉइड ग्रन्थि की सामान्य वृद्धि तथा सक्रियता को प्रेरित एवं नियंत्रित करता है।

4. एड्रिनो कॉर्टिकोट्रोपिक हॉर्मोन (Adreno Corticotropic Hormone, ACTH) 

यह एक पॉलीपेप्टाइड होर्मोन है जो अधिवृक्क ग्रन्थि (adrenal gland) हॉर्मोनों के उत्पादन व स्रावण को नियंत्रित करता है। यह हॉर्मोन वसा-अपघटनी किण्वकों को सक्रिय करता है तथा मेलानिन (melanin) संश्लेषण को उत्तेजित करता है। 

इसका स्त्रावण हाइपोथैलेमस (hypothalamus) द्वारा उत्पादित कॉर्टिकोट्रोपिक रिलीजिंग हॉर्मोन (Corticotropic Releasing Hormone) द्वारा नियंत्रित होता है। ACTH एवं अधिवृक्क ग्रन्थि के कॉर्टेक्स (cortex) के हॉर्मोन परस्पर ऋणात्मक पुनर्भरण सिद्धान्त द्वारा नियंत्रित किये जाते हैं।

5. गोनेडोट्रॉपिक हॉर्मोन (Gonadotropic Hormone GTH)

क्षारकरंजी कोशिकाओं द्वारा गोनेडोट्रॉपिक हॉर्मोनों का स्त्रावण किया जाता है। ये हॉरमोन जनन प्रन्थियों अथवा जनद (gonads) की वृद्धि तथा सक्रियता को नियंत्रित करते हैं। ये हॉर्मोन जननांगों (sex organs) व सहायक जनन लक्षणों (accessory or secondary sex characters) की वृद्धि करने में सहायक होते हैं। तथा मादा में रज चक (menstrual cycle), गर्भावस्था (pregnancy) तथा दुग्ध स्त्रावण (Inctation) को भी नियंत्रित करते हैं। ये निम्न दो प्रकार के होते हैं -

(i) ल्यूटिनाइजिंग हॉर्मोन (Lutenizing Hormone, LH) अथवा अंतराली कोशिका प्रेरक हॉमोन (Interstitial Cell Stimulating Hormone, ICSH)

यह एक ग्लाइकोप्रोटीन (glycoprotein) होता है। यह मादा में FSH के साथ अण्डोत्सर्ग (ovulation) में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह हॉर्मोन थीका इन्टरना (theca interna) कोशिकाओं को एस्ट्रोजन तथा प्रोजेस्टरोन (progesterone) नामक हॉर्मोनों के स्त्रवण के लिये प्रेरित करता है। 

नर में यह वृषण (Testis) में स्थित अंतराली कोशिकाओं (interstitial cells) अथवा लैंडिंग की कोशिकाओं (Leydig's cells) को नर जनन हॉर्मोन, टेस्टोस्टेरोन (Testosterone) के सावण के लिये प्रेरित करता है।

(ii) फॉलिकल स्टिमुलेटिंग हॉर्मोन (Follicle Stimulating Hormone, FSH) 

यह भी एक ग्लाइकोप्रोटीन है। यह हॉर्मोन मादा में अण्डाशय की फॉलिकल वृद्धि एवं नर में शुक्राणुओं के निर्माण की प्रक्रिया को नियंत्रित करता है।

6. मेलेनोसाइट उद्दीपक हॉर्मोन (Melanocyte Stumulating Hormone, MSH): 

यह इन्टरमिडिन भी कहलाता है। यह हार्मोन ऐडिनोहाइपोफाइसिस के पार्स इन्टरमीडिया (pars intermedia) द्वारा स्रावित होता है। मानव MSH. 22 ऐमीनो अम्लों का बना हुआ पॉलीपेप्टाइड होता है। यह दो प्रकार का होता है a-MSH, तथा B-MSH 
MSH तथा ACTH दोनों में ऐमीनो अम्लों का अनुक्रम स्थान 4 से 10 तक समान होता है, अत: MSH की भाँति ACTH, मैलेनोफोर को उत्तेजित करता है।

न्यूरोहाइपोफाइसिस द्वारा संचित हॉर्मोन (Hormones from Neurohypophysis)

न्यूरोहाइपोफाइसिस (Neurohypophysis) भाग द्वारा स्वयं कोई हॉरमोन नहीं बनाया जाता बल्कि दो हॉमोन जो कि हाइपोथैलेमस के सुपरऑप्टिक व पेरावेन्ट्रीक्यूलर केन्द्रकों द्वारा बनाये जाते हैं, पीयूष ग्रन्थि के इस भाग में संगृहीत हो जाते हैं व आवश्यकतानुसार सक्रिय अवस्था में निर्मुक्त किये जाते हैं। ये निम्न हैं-

(i) ऑक्सीटोसीन (Oxytocin)

यह हॉरमोन ऑक्टेपेप्टाइड है जो मादा में गर्भाशय पेशियों को संकुचन के लिए उद्दीपित करता है। यह सभी प्रकार की चिकनी पेशियों (smooth muscles), मूत्राशय भित्ति, पित्ताशय (gall bladder), आन्त्र (intestine) आदि को भी प्रभावित करता है। यह स्तन ग्रन्थियों से दुग्ध निष्कासन को भी नियंत्रित करता है। 

मैथुन के समय इसके स्त्रावण से गर्भाशय पेशियाँ संकुचन कर शुक्राणुओं को फैलोपियन नलिकाओं तक बढ़ने में मदद करती हैं। यह हॉरमोन शिशु को गर्भाशय से बाहर निकालने में सहायक होता है। इसे पाइटोसिन (pitocin) के नाम से भी जाना जाता है।

(ii) वैसोप्रेसिन (Vasopressin) 

यह हॉर्मोन, एन्टीडाइयूरेटिक हॉरमोन (antidiuretic hormone. ADH) भी कहलाता है। यह भी ऑक्टेपेप्टाइड है। यह वृक्क कोशिकाओं एवं नलिकाओं द्वारा मूत्र में जल की मात्रा का नियंत्रण करता है। इसकी कमी से मूत्र में जल की मात्रा में वृद्धि हो जाती है। इस रोग को डायबिटीज इन्सीपीडस (diabetes insipidus) कहते हैं।

वैसोप्रेसिन हॉमोन को मात्रा में वृद्धि होने पर मूत्र में जल की कमी हो जाती है। यह हॉरमोन, परिधीय कोशिकाओं व धमनियों की पेशियों का संकुचन कर इन्हें संकीर्ण बना देता है और इस कारण रक्त दाब में वृद्धि होती है। इस हॉर्मोन को पिट्टेसिन (pitressin) के नाम से भी जाना जाता है।


असामान्य कार्य (Abnormal Function)

(1) हाएपोपट्यूटेरिज्म (Hypopituitarism) शिशुओं में जब पीयूष ग्रन्थि से कम मात्रा में हॉर्मोन का स्त्रावण होता है तो उनमें बौनापन (dwarfism) नामक रोग होता है। वयस्क में यह रोग दो प्रकार का होता है एक तो पीयूष ग्रन्थि के सभी हॉर्मोनों की कमी के कारण तथा दूसरा, केवल एक विशेष हॉर्मोन की कमी के कारण।

TSH की कमी के कारण मिक्सिडिमा (myxoedema) रोग हो जाता है। अगर सभी हॉमोनों की कमी है (पीयूष ग्रन्थि के हटने से या पीयूष ग्रन्थि के ट्यूमर से) तो सिमण्ड का (Simmond's) रोग होता है।


(i) हाइपरपिट्युटेरिज्म (Hyperpituitarism) पीयूष ग्रन्थि के हॉमॉन अगर अधिक मात्रा में संवित हो तो विभिन्न रोग उत्पन्न हो जाते हैं वृद्धि हार्मोन (GH) की अधिकता के कारण एक्रोमेगेली (acromegaly) रोग होता है।

 ACTH की अधिक मात्रा से कुशिंग का रोग (Cushing's disease) होता है। TSH के अधिक स्त्रावण से जाइजेन्टीज्म (gigantism) रोग होता है। कुशिंग के रोग के लक्षण, चेहरा गोल होना, हाथ, पैर व उदर पर अधिक बाल आना, अधिक रक्तदाब होना आदि है। जाइजेन्टीज्म में हड्डियों की लम्बाई बहुत अधिक बढ़ जाती है।

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