शनिवार, अक्तूबर 16

थायराइड ग्रंथि और थायराइड हॉर्मोन (Thyroid gland and thyroid hormone)

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अन्तःस्रावी ग्रंथियाँ (Endocrine glands)

अन्तःस्रावी ग्रन्थियाँ क्या है? (difference between exocrine and endocrine gland)

मानव शरीर में विभिन्न ग्रंथियाँ पायी जाती हैं। इनमें से कुछ ग्रंथियाँ नलिका युक्त होती है जैसे लार ग्रंथियाँ, यकृत ग्रंथि आदि। ये अपना स्राव नलिका या वाहिनी द्वारा स्रावित करती हैं। हमारे शरीर में कुछ ऐसी भी ग्रंथियाँ होती हैं जिनके स्राव के परिवहन के लिये वाहिकाएँ नहीं होती हैं। इन ग्रंथियों को नलिकाविहीन या अन्तःस्रावी ग्रंथियाँ (Endocrine glands) कहते हैं।
 

हार्मोन क्या होता है (what is hormone)

अन्त:स्रावी ग्रंथियों से स्रावित रस को हॉर्मोन (Hormone) कहते हैं। हॉर्मोनों का हमारे शरीर में परिवहन रुधिर (blood) द्वारा होता है। हार्मोन (hormone) ऐसे रसायन होते हैं जो हमारे रक्त के माध्यम से आपके अंगों, त्वचा, मांसपेशियों और अन्य ऊतकों तक संदेश पहुंचाकर आपके शरीर में विभिन्न कार्यों का समन्वय करते हैं। ये संकेत हमारे शरीर को बताते हैं कि कब क्या करना है? हॉर्मोन शब्द का सर्वप्रथम उपयोग स्टरलिंग (Starling) ने 1902 में किया था। इस शब्द का अर्थ होता है - उत्तेजित करना।

रासायनिक दृष्टि से हॉर्मोन प्रोटीन या स्टीराइड्स होते हैं। ये जल में विलेय होते हैं। शरीर की विभिन्न कार्यिकीय क्रियाओं जैसे परिसंचरण, पाचन, उपापचय, उत्सर्जन, श्वसन आदि का संचालन व नियमन हॉर्मोनों द्वारा होता है। हॉर्मोनों का प्रभाव मन्द गति से होता है तथा ये सूक्ष्म मात्रा में आवश्यक होते हैं।

एडीसन रोग (Addison's disease)

थॉमस ऐडिसन (Thomas Addision, 1885) ने प्रयोगों से बताया कि एड्रिनल ग्रंथि के कोर्टेक्स (cortex) को शल्य क्रिया द्वारा निष्क्रिय कर दिये जाने पर प्राणी में एक विशेष प्रकार का रोग उत्पन्न हो जाता है।
 
इस रोग में त्वचा में अतिवर्णकता (excessive pigmentation) का होना, भूख नहीं लगना, वजन का कम होना, कमजोरी, रक्त दाब का कम होना आदि होते हैं । इस रोग को ऐडिसन का रोग (Addison's disease) कहा जाता है। इस महत्वपूर्ण खोज के कारण ही थॉमस ऐडिसन को अन्तः स्रावी विज्ञान का जनक (Father of endocrinology) माना जाता है।

थायरॉइड ग्रंथि (Thyroid gland)

थायरॉइड ग्रंथि (Thyroid gland) गर्दन में श्वास नली के दोनों ओर स्वर यन्त्र के निकट स्थित होती हैं। यह ग्रंथि दो लोब में बटी रहती हैं। दोनों लोब (lobes) एक दूसरे से पतले तन्तु द्वारा जुड़ी रहती है। अत: अंग्रेजी के अक्षर 'H' आकृति की दिखाई देती। यह थाइरॉक्सिन हॉर्मोन (thyroxine hormone) स्रावित करती है। थाइरॉक्सिन हॉर्मोन में आयोडीन की अधिकता होती है।


थाइरॉक्सिन हॉर्मोन के मुख्य कार्य (thyroid gland function)


(i) यह आधारी उपापचयी दर (Basal metabolic rate - BMR.) नियंत्रित करता है।

(ii) यह हॉर्मोन शरीर के तापमान को नियंत्रित रखता है। 

(iii) कोशिकीय श्वसन दर को तेज करता है।

(iv) शारीरिक वृद्धि को अन्य हॉर्मोनों के साथ मिलकर नियन्त्रित करता हैं।

(v) उभयचरों के कायान्तरण (metamorphosis) में आवश्यक।


थायराइड कितना होना चाहिए? (normal thyroid levels)

थायराइड ग्रंथि (thyroid gland) से थायराइड हार्मोन (thyroid hormone) स्त्रावित होता हैं जो शरीर के विकास के लिए जरूरी आवश्यक होता हैं। थायराइड ग्रंथि मुख्य रूप से तीन हार्मोन को स्त्रावित करता है जिसे T3, T4, TSH नाम दिया गया है जिन्हें संयुक्त रूप से थायराइड हार्मोन (thyroid hormone) कहते हैं।

thyroid

ये हार्मोन पूरे शरीर में काम करते हैं और शारिरिक विकास, शरीर का तापमान और मेटाबोलज्म को प्रभावित करते हैं। बच्चों का दिमाग विकसित करने में भी इन हार्मोन्स की भूमिका होती है। इसलिए थायराइड हार्मोन्स एक लेवल में होना चाहिए। इसकी अधिकता और कमी शरीर के लिए नुकसानदेह होता हैं। तो आइये देखते है कि थायराइड नार्मल कितना होना चाहिए?

TSH जिसे थाइरोइड स्टिमुलेटिंग हॉर्मोन (thyroid stimulating hormone) कहा जाता हैं। इसकी नार्मल रेंज (normal range) 0.5 से 5.5 mIU/L होती हैं।

T3 यानी ट्राईआयोडो थाइरॉक्सिन (triiodothyronine) की नार्मल रेंज 100-200 ng/dl और

T4 जिसे थाइरॉक्सिन (Thyroxine) भी कहा जाता हैं। T4 की नार्मल रेंज 5-12 µg/dL होती हैं।

थायराइड ग्रंथि से ही स्त्रावित अन्य हार्मोन फ्री T3 की नॉर्मल रेंज 2.3 - 4.1 pg/ml और फ्री T4 की नार्मल रेंज 0.8 से 1.8 ng/dl होनी चाहिए।

Hormons

Normal Range

TSH

0.5-5.5 mIU/L 

T3

100-200 ng/dl

T4

5-12 µg/dL 

Free T3

2.3-4.1 pg/ml

Free T4

0.8-1.8 ng/dl

थाइरॉक्सिन हॉर्मोन की अधिकता के प्रभाव (hyperthyroid symptoms)

थाइरॉइड ग्रंथि की अतिसक्रियता के कारण रूधिर में थाइरॉक्सिन की मात्रा सामान्य से अधिक हो जाती है जिसके फलस्वरूप निम्नप्रभाव देखने को मिलते है।

  • श्वसन दर बढ़ जाती है।
  • व्यक्ति को ठण्ड में भी सर्दी नहीं लगती है।
  • हृदय की धड़कन प्रति मिनट 72 से अधिक हो जाती है।
  • व्यक्ति बैचेन रहता है।
  • बिना काम के पैर को हिलाने या चलने लगता है।
  • रूधिर दाब (blood pressure) बढ़ जाता है।
  • श्वसन दर बढ़ जाने के कारण व्यक्ति का भार कम हो जाता है।
  • प्राणी का स्वभाव चिड़चिड़ा हो जाता है ।
  • आँखें बड़ी तथा फूलकर नेत्र कोटर (eye cavity) से बाहर को निकलने लगती है। इस रोग को नेत्रोन्सेधी गलगण्ड या एक्सोफ्थेल्मिक ग्वाइटर (exophthalmic goiter) कहते हैं।

थाइरॉक्सिन हॉर्मोन की कमी के प्रभाव (hypothyroid ke lakshan)

  • शरीर में इस हॉर्मोन की कमी से आधारी उपापचयी दर कम हो जाती है।
  • भोजन के ऑक्सीकरण की दर कम हो जाने से ऊर्जा का विमुक्तन कम होता है जिसके फलस्वरूप रोगी को सुस्ती आती है।
  • शरीर शिथिल रहता है।
  • हृदय की गति धीमी हो जाती है।
  • शरीर का वजन बढ़ जाता है एवं पेट निकल आता है।
  • बच्चों में इस हॉमोन की कमी से बौनापन होता है जिसे अवटुवामनता (dwarfism) कहते हैं। 


ऐसे बालकों में बुद्धि का विकास कम होता है। पर्वतीय प्रदेशों की मृदा में आयोडीन की कमी होती है ऐसी भूमि से प्राप्त भोज्य पदार्थों में आयोडीन की कमी हो जाती है। 
ऐसे स्थानों पर आयोडीन युक्त नमक का उपयोग करना चाहिये । इस हॉर्मोन की लगातार कमी से थायराक्सीन हॉर्मोन संश्लेषण हेतु अधिक सक्रिय हो जाती है जिससे गला सूज कर लटक जाता हैं और गलगण्ड (goiter) नामक रोग हो जाता है।

पैराथाइरॉइड या परावटु ग्रंथियाँ (Parathyroid glands)

थाइरॉइड ग्रंथियों से निकट रूप से सम्बन्धित बटन की आकृति की चार पैराथाइरॉइड ग्रंथियाँ पायी जाती हैं। इन ग्रंथियों द्वारा पैराथार्मोन का स्राव होता है। यह हॉर्मोन केल्शियम एवं फॉस्फोरस के उपापचय को प्रभावित करता है और उनका निश्चित अनुपात बनाये रखता है ये दोनों तत्व कंकाल में पाये जाते हैं।
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