खून की कई बीमारिया होती है जो जन्मजात होती है या जन्म के पश्यात प्रकट हो जाती है। इन्ही बीमारियों में से हम 5 ऐसी बीमारियों या रक्त विकारों का अध्ययन करने जा रहे है, जो सामान्य रूप से अधिक मात्रा में दिखाई देती है।
1. एनीमिया (Anemia)
एनीमिया क्या है ? (What is Anemia)
यह नाम प्राचीन ग्रीक शब्द से लिया गया है जिसका अर्थ होता है "खून की कमी"। जब रक्त में हिमोग्लोबिन की कमी हो जाती है तो उसे एनिमिया (Anemia) कहते है। और कभी−कभी आरबीसी (RBC) या लाल रक्त कणिकाओ की कमी को भी एनिमिया कहा जाता है क्योकि हिमोग्लोबिन की उपस्थिति लाल रक्त कणिकाओ में ही होती है।
हीमोग्लोबिन का प्रमुख कार्य ऑक्सीजन को शरीर के विभिन्न भागो तक ले जाना होता है। जब किसी को एनिमिया या खून की कमी हो जाती है तो शरीर के विभिन्न उत्तकों में ऑक्सीजन की मात्रा में कमी हो जाता है, जो कई लक्षणों के रूप में दिखाई देते है।
लक्षणों में थकान, त्वचा का पीलापन, सांस की तकलीफ, चक्कर आना या दिल
की धड़कन तेज़ होना आदि हो सकते हैं। एनिमिया का इलाज
शुरू करने से पहले यह जान लेना आवश्यक होता है कि एनिमिया के कितने प्रकार होते है। उसी के आधार पर इलाज शुरू किया जाता है।
एनिमिया के प्रकार (Anemia types)
लोहे या आयरन की कमी से एनीमिया (Iron deficiency anemia)
लाल रक्त कणिकाओ के टूटने से रक्त की हानि ( Hemolytic anemia)
रक्त कोशिकाओ के निर्माण में दोष के कारण (Aplastic anemia)
विटामिन B12 या
फोलिकएसिड की कमी से (Megaloblastic anemia)
रक्त में
हिमोग्लोबिन की जाँच द्वारा एनीमिया का पता लगाया जा सकता है।
2. ल्यूकेमिया (Leukemia)
ल्यूकेमिया क्या है? (what is leukemia)
ल्यूकिमिया एक प्रकार का रक्त कैंसर है जो अस्थि मज्जा (Bone marrow) की कोशिकओं के असामान्य रूप से बढ़ने और नियंत्रण से बाहर हो जाने पर होता हैं।
रक्त कोशिकाओं में मुख्य रूप से श्वेत रक्त कोशिकाएं (WBC) हैं, जिन्हें ल्यूकोसाईट भी कहा जाता है। ल्यूकीमिया शब्द इन्ही ल्यूकोसाईट से मिला है। ये श्वेत रक्त कोशिकाएं आपके शरीर को संक्रमण से लड़ने में मदद करती हैं।
ल्यूकेमिया में अस्थि मज्जा असामान्य श्वेत
रक्त कोशिकाएं का उत्पादन करता है। ये असामान्य श्वेत रक्त कोशिकाएं नाम की तो
श्वेत रक्त कोशिकाएं होती है परन्तु शरीर को संक्रमण से लड़ने में कोई मदद नहीं करती
हैं। बल्कि ये कोशिकाएं स्वस्थ रक्त कोशिकाओं को बाहर निकालती हैं, जिससे रक्त को अपना काम करना मुश्किल हो जाता है। इस ल्यूकीमिया का सटीक कारण ज्ञात नहीं है लेकिन रोग के प्रति
एक वंशानुगत प्रवृत्ति देखी गई है।
एक्यूट ल्यूकेमिया (Acute leukemia)
इसमे अधिकांश कोशिकाएं परिपक्व नहीं होती हैं और
सामान्य कार्यों को पूरा नहीं कर पाती हैं। यह बहुत तेजी से फैलता है और अधिक
खतरनाक होता है।
क्रोनिक ल्यूकेमिया (Chronic leukemia)
इसमे कुछ कोशिकाएं अपरिपक्व होती हैं, लेकिन अन्य सामान्य तरह से काम करती है। यह एक्यूट ल्यूकेमिया की तुलना में धीरे-धीरे बढ़ता है।
इसके अलावा इन्हे
श्वेत रक्त कोशिकाएं के प्रकार के आधार पर अन्य नाम भी दिया जाता है जैसे मायलोजेनस
या माइलॉयड ल्यूकेमिया (myeloid leukemia) या लिम्फोसाइटिक ल्यूकेमिया (lymphocytic
leukemia) आदि।
ल्यूकेमिया के लक्षण (leukemia symptoms)
ल्यूकेमिया के
पुराने रूपों में अक्सर कोई लक्षण नहीं होता है जब तक कि बीमारी के बहुत बाद में न
हो। और जब लक्षण दिखाई देते हैं,
तो वे आमतौर पर धीरे-धीरे
दिखाई देते हैं। वजन में कमी, बुखार, अधिक पशीना आना, प्लीहा (spleen) लीवर या
लिम्फ का बढ़ना, रक्तस्राव, बेसिक मेटाबोलिज्म की दर का बढ़ना आदि ल्यूकेमिया के प्रमुख
लक्षण (symptoms of leukemia) है।
CBC जाँच द्वारा ल्यूकेमिया का पता लगाया जा सकता है।
3. थैलेसीमिया (thalasemia)
थैलेसीमिया क्या है? (what is thalasemia)
थैलेसीमिया एक आनुवांशिक (heriditary) रक्त विकार है, जिसमें शरीर हीमोग्लोबिन का असामान्य रूप बनाता है। आनुवांशिक विकार का अर्थ है कि माता या पिता में से कोई इस रोग का वाहक (carriar) है। यह एक आनुवंशिक परिवर्तन या कुछ प्रमुख जीन की कमी के कारण होता है।
विकार के परिणामस्वरूप लाल रक्त कोशिकाओं का अत्यधिक विनाश होता है, जिससे एनीमिया होता है। हीमोग्लोबिन, जो शरीर में सभी कोशिकाओं को ऑक्सीजन पहुंचाता है, दो जोड़ी ग्लोब्युलिन श्रृंखला (chain) से बना अणु होता है, जिसमे अल्फा और बीटा ग्लोब्युलिन श्रृंखला (chain) प्रमुख रूप से होती है। थैलेसीमिया इन्ही एक या अधिक ग्लोब्युलिन श्रृंखला के बनने में उत्पन दोष के कारण होता है।
अल्फा थैलेसीमिया (alpha thalasemia)
अल्फा ग्लोब्युलिन चेन के कम बनने या ना बनने के कारण होता है।
बीटा थैलेसीमिया (beta thalasemia) बीटा ग्लोब्युलिन चेन के कम बनने या नहीं बनने
के कारण होता है।
ग्लोब्युलिन चेन के असंतुलन से hemolysis और erithropoisis हो जाता है। अर्थात लाल रक्त कणिकाए टूट जाती है जिससे हिमोग्लोबिन निकल जाता है।
जब
हम थैलेसीमिया के प्रकार के बारे में बात करते हैं, तो हीमोग्लोबिन का जो हिस्सा
प्रभावित होता है उसे उसी प्रकार का थैलेसीमिया कहा जाता है। जैसे अल्फा
थैलेसीमिया तो यह हीमोग्लोबिन के अल्फा हिस्से को संदर्भित करता है जो कि नहीं
बनाया जा रहा है या इसके हिस्से में कोई कमी है। अल्फा थैलेसीमिया (alpha
thalasemia) में, अल्फा ग्लोबिन जीन में से कम से कम एक उत्परिवर्तन या असामान्यता है।
यदि बीटा
भाग नहीं बनाया जा रहा है तो बीटा थैलेसीमिया कहा जाता है। बीटा थैलेसीमिया (beta
thalasemia) में, बीटा ग्लोबिन जीन
प्रभावित होते हैं।
थैलेसीमिया माइनर
(thalasemia miner या thalasemia trait) वाले व्यक्ति में कोई लक्षण नहीं हो सकते
हैं या केवल हल्के एनीमिया हो सकते हैं। जबकि थैलेसीमिया मेजर (thalasemia
major) वाले व्यक्ति में गंभीर लक्षण हो सकते हैं और नियमित रूप से रक्त संचार
(blood transfusion) की आवश्यकता हो सकती है।
थैलेसीमिया लक्षण
न होने का मतलब है कि आपके पास कोई लक्षण नहीं हो सकते हैं, लेकिन यह रोग माता पिता से बच्चों में जा सकता है और थैलेसीमिया होने का खतरा
बढ़ा सकते हैं। जिसे रोग का वाहक (carrier) कहा जाता है।
थैलेसीमिया के लक्षण (thalasemia symptoms)
हर किसी को
थैलेसीमिया के लक्षण दिखाई नहीं देते हैं। विकार के लक्षण भी बचपन या किशोरावस्था
में बाद में दिखाई देते हैं। थैलेसीमिया के प्रति जागरूकता फ़ैलाने के लिए 8 मई को
विश्व थैलेसीमिया दिवस (world thalasemia day) मनाया जाता है।
अत्यधिक थकान, कमजोरी और वृद्धि धीमी, विकास में देरी, हड्डी में विकृति (विशेष रूप से चेहरे में), गहरा मूत्र, त्वचा का पीलापन आदि थैलेसीमिया के लक्षण है।
थैलेसीमिया की
जाँच (thalasemia test)
जिसे हिमोग्लोबिन इलेक्ट्रोफोरेसिस कहा जाता है के द्वारा इसका पता लगाया जा सकता
है।
4. पॉलीसाइथिमिया Polycythemia (erithrocytosis)
पॉलीसाइथिमिया क्या है ? (what is polycythemia)
पॉलीसाइथिमिया शब्द दो शब्दों से मिल कर बना है जिसमे पॉली का अर्थ है ’अधिक’ और साइथिमिया शब्द सेल (cell) से बना है जिसका अर्थ है ‘कोशिकाएं’। अर्थात जब रक्त में कोशिकाओं की संख्या सामान्य से अधिक हो जाती है तो उस अवस्था को पॉलीसाइथिमिया कहा जाता है। ये दो कारणों से हो सकता है।
1. सापेक्ष पॉलीसाइथिमिया (relative Polycythemia)
सापेक्ष रूप से जब रक्त में द्रव पदार्थो की कमी हो जाती है, तो रक्त का दूसरा भाग अपने आप बढ़ जाता है क्योंकि रक्त दो भागों से बना होता है। ठोस भाग में कोशिकाओं को और द्रव भाग में प्लाज्मा को गिना जाता है। इसमें कोशिकाओं की संख्या में कोई वृद्धि नहीं होती है बल्कि कोशिकाओं की संख्या के प्रति इकाई आयतन में वृद्धि हो जाती है।
यह किसी रोग या बीमारी की वजह से न होकर कम पानी पीने से (dehydration), तनाव के कारण पॉलीसाइथिमिया (जो ज्यादा मेहनती लोगो में देखा जाता है) से हो सकता है। इस प्रकार में सभी कोशिकाओं की संख्या, आकृति और अस्थि मज्जा सामान्य होते है, लेकिन हीमोग्लोबिन(Hb), हेमटोक्रिट(PCV) , या लाल रक्त कोशिका(RBCs) का मान सामान्य सीमा से अधिक होती है।
2. निरपेक्ष पॉलीसाइथिमिया (absolute Polycythemia)
निरपेक्ष पॉलीसाइथिमिया
को दो श्रेणियों में विभाजित किया गया है : प्राथमिक और माध्यमिक।
(i) प्राथमिक पॉलीसाइथिमिया (Primary Polycythemia)
इसे पॉलीसाइथिमिया वेरा भी कहा जाता है। अस्थि मज्जा का एक दुर्लभ विकार है, जो तब होता है जब मज्जा अति सक्रिय होता है। और शरीर की
आवश्यकता से अधिक रक्त कोशिकाओं का उत्पादन करता है। पॉलीसिथेमिया वेरा आमतौर पर लाल
रक्त कोशिकाओं या हीमोग्लोबिन की उच्च मात्रा को इंगित करता है, लेकिन यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि सफेद
रक्त कोशिका और प्लेटलेट काउंट भी बढ़ सकते हैं।(ii) माध्यमिक पॉलीसाइथिमिया
(secondary Polycythemia)
यह एरिथ्रोपोइटिन के एक बढ़े हुए स्तर के
कारण होता है। कुछ लोगों को धूम्रपान के कारण सीमित ऑक्सीजन के
परिणामस्वरूप या उच्च ऊंचाई पर रहने के कारण प्रभावित करता है।
हीमोग्लोबिन का सामान्य स्तर महिलाओं में 16.5g / dL से कम हो पुरुषों में 18.5 g / dL से कम हो।
हेमेटोक्रिट का सामान्य मान महिलाओं में 45% से कम और
पुरुषों में 50% से कम हो।
लाल रक्त कोशिकाओं का सामान्य मान महिलाओं में 4.5 मिलियन/क्यूबिक मिलीलीटर से कम
पुरुषों में 5.0 मिलियन/क्यूबिक मिलीलीटर से कम हो।
पॉलीसिथेमिया के कारण
पॉलीसिथेमिया एक
अस्थि मज्जा विकार है। अस्थि मज्जा अधिकांश हड्डियों के केंद्र में पाया जाता है
और सामान्य रूप से सभी लाल रक्त कोशिकाओं, सफेद रक्त कोशिकाओं और प्लेटलेट्स का
उत्पादन करता है। पॉलीसिथेमिया वेरा में, अस्थि मज्जा कोशिका में एक उत्परिवर्तन होता है, जिसके परिणामस्वरूप अस्थि मज्जा कोशिकाओं का अधिरोहण होता
है। हालांकि पॉलीसिथेमिया वेरा का सटीक कारण अज्ञात है। पॉलीसिथेमिया वेरा एक
असामान्य स्थिति है यह महिलाओं की तुलना में पुरुषों में अधिक होता है।
पॉलीसिथेमिया वेरा के लक्षण
पॉलीसिथेमिया वेरा के लक्षण समय के साथ अधिक स्पष्ट हो सकते हैं। अधिक सामान्य लक्षणों में शामिल हैं: चक्कर आना, सिर दर्द, अधिक पसीना आना, त्वचा में खुजली, दृष्टि में धुंधलापन, थकान हथेलियों और नाक पर लाल या पपड़ीदार त्वचा, पैरों में जलन, पेट भरा हुआ आदि।
उपचार के बिना, पॉलीसिथेमिया वेरा वाले लोगों को जटिलताओं का अनुभव होने की अधिक संभावना हो सकती है, जैसे: बढ़े हुए प्लीहा, खून के थक्के, पेप्टिक अल्सर, दिल की बीमारी, गाउट आदि।
CBC जाँच द्वारा ल्यूकेमिया का पता लगाया जा सकता है।
5. हीमोफिलिया (Hemophilia)
हीमोफिलिया क्या है? (what is Hemophilia)
हीमोफिलिया एक आनुवांशिक रक्तस्राव का विकार है जिसमें रक्त का थक्का ठीक से नहीं बनाता है जिसके कारण चोटों या सर्जरी के बाद रक्तस्राव हो सकता है। रक्त में 13 प्रकार के क्लॉटिंग फैक्टर (clotting factor) होते हैं जो रक्तस्राव को रोकने में मदद करते हैं।
हीमोफिलिया
वाले लोगों में फैक्टर VIII या फैक्टर IX
की कमी होती हैं। हीमोफिलिया की गंभीरता रक्त
में फैक्टर की मात्रा से निर्धारित होती है। फैक्टर की मात्रा जितनी कम होगी,
समस्याएं उतनी ही गंभीर हो सकती हैं।
हीमोफिलिया के कारण
हीमोफिलिया उत्परिवर्तन
के कारण होता है। एक जीन, जो रक्त के थक्के बनाने के लिए आवश्यक फैक्टर बनाने
के निर्देश प्रदान करता है। ये जीन एक्स गुणसूत्र पर स्थित हैं। नर में एक X और एक Y गुणसूत्र (XY) होता है और
महिलाओं में दो X गुणसूत्र (XX) होते हैं। नर
अपनी माता से X गुणसूत्र और अपने पिता से Y गुणसूत्र प्राप्त करते हैं। मादा माता-पिता में प्रत्येक से एक एक एक्स
गुणसूत्र प्राप्त करती हैं।
X गुणसूत्र में कई जीन होते हैं जो Y गुणसूत्र पर मौजूद नहीं होते हैं। इस प्रकार, पुरुषों को हीमोफिलिया
जैसी बीमारी हो सकती है, अगर उन्हें एक प्रभावित एक्स क्रोमोसोम विरासत
में मिलता है, जिसमें फैक्टर VIII या फैक्टर IX जीन दोनों में से कोई एक उत्परिवर्तन होता है
एक प्रभावित एक्स
क्रोमोसोम के साथ एक महिला हीमोफिलिया की "वाहक" है। कभी-कभी एक महिला
जो एक वाहक है, हेमोफिलिया के लक्षण वाली हो सकती है।
हीमोफिलिया के कई
प्रकार हैं जिसमे दो मुख्य हैं:
हीमोफिलिया ए (क्लासिक हेमोफिलिया)
यह क्लॉटिंग फैक्टर VIII की कमी के कारण होता है। यह हीमोफिलिया के लगभग 85 फीसदी मामले इस प्रकार के होते है।
हीमोफिलिया बी
इसे "क्रिसमस रोग" के रूप में भी जाना जाता है। यह क्लॉटिंग फैक्टर IX की कमी के कारण होता है। यह हीमोफिलिया के लगभग 15 फीसदी मामले इस प्रकार के होते है।
हीमोफिलिया के लक्षण
हीमोफिलिया के
लक्षणों में अत्यधिक रक्तस्राव और आसान घाव शामिल हैं। रक्तस्राव बाहरी या आंतरिक
रूप से हो सकता है। हीमोफिलिया से ग्रसित व्यक्ति के मस्तिष्क में सिर पर अकड़न
के बाद आंतरिक रक्तस्राव हो सकता है। मस्तिष्क रक्तस्राव के लक्षणों में सिरदर्द,
उल्टी, सुस्ती, व्यवहार में
परिवर्तन, भद्दापन, दृष्टि समस्याएं, पक्षाघात और दौरे शामिल हो सकते हैं।
कोगुलेसन प्रोफाइल टेस्ट
(Coagulation profile test) के द्वारा हीमोफिलिया का पता लगाया जा सकता है।
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