सोमवार, सितंबर 6

टेस्ट ट्यूब बेबी (Test tube baby)

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टेस्ट ट्यूब बेबी क्या है (what is test tube baby) या (test tube baby means)

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टेस्ट ट्यूब बेबी (Test tube baby)
शब्द का प्रयोग उस बच्चें के लिए किया जाता है, जो एक महिला के शरीर के बाहर एक लैब में गर्भधारण करता है किंतु जन्म माँ की कोख़ से ही लेता है। यह एक वैज्ञानिक चरण का हिस्सा होता है जो एक लैब और महिला के शरीर में संपन्न होता है।

सही तौर पर टेस्ट ट्यूब शब्द का उपयोग ही गलत है क्योंकि दशकों पहले से ही जिस प्रयोगशाला में अंडे और शुक्राणु को मिलाते थे, वह पेट्री डिश है ना कि टेस्ट ट्यूब। हालाँकि उस समय से ही यह शब्द प्रचलन में हो गया है।



विश्व की पहली टेस्ट ट्यूब बेबी (first test tube baby)

टेस्ट ट्यूब बेबी शब्द का इस्तेमाल पहली बार 1978 में इंग्लैंड में लुईस ब्राउन के सफल जन्म के साथ किया गया था। 25 जुलाई 1978 को इंग्लैंड के मैनचेस्टर के एक अस्पताल में विश्व की पहली टेस्ट ट्यूब बेबी लुईस ब्राउन का जन्म हुआ था। यह एक सिजेरियन डिलीवरी थी जिसमें लुईस का वजन 2.6 किलोग्राम था। उसकी मां का नाम लेसली ब्राउन था और पिता का नाम पीटर ब्राउन था। आईवीएफ तकनीक से जन्मी इस लड़की के विशेषज्ञ डॉक्टर स्त्री रोग विशेषज्ञ पैट्रिक स्टेप्टो और वैज्ञानिक रॉबर्ट एडवर्ड्स थे। इसके लिए उनको 2010 में नोबेल प्राइज मिला था


एशिया की पहली टेस्ट ट्यूब बेबी (first test tube baby in Asia)

19 मई 1983 में प्रोफेसर एसएस रत्नम और प्रोफेसर एन जी सून ची और उनकी टीम के प्रयासों से एशिया की पहली टेस्ट ट्यूब बेबी का जन्म सिंगापुर में हुआ था इस बच्चे का नाम सैमुअल ली था।


भारत की पहली टेस्ट ट्यूब बेबी (first test tube baby in India)

6 अगस्त 1986 को मुम्बई में भारत की पहली टेस्ट ट्यूब बेबी का जन्म हुआ था और इस बेबी का नाम था हर्षा। भारत के इस टेस्ट ट्यूब बेबी का श्रेय डॉक्टर सुभाष मुखर्जी हो जाता है। कहा तो यह भी जाता है कि भारत की पहली टेस्ट बेबी हर्षा नहीं दुर्गा उर्फ कनुप्रिया अग्रवाल थी किंतु सरकारी कागजों में इसका कोई जिक्र नहीं है। अतः हर्षा को ही पहली टेस्ट ट्यूब बेबी होने का गौरव प्राप्त है।


टेस्ट ट्यूब बेबी की प्रक्रिया (test tube baby process)


टेस्ट ट्यूब बेबी की प्रक्रिया  कई चरणों में पूरी होती है जिसके मुख्य चरण निम्न है-

(1) अंडा उत्पादन (egg production)

प्राकृतिक तौर पर औरत के अंडाशय में एक महीने के दौरान एक ही अंडा परिपक्व होता है. लेकिन आई. वी. एफ. प्रक्रिया में महिलाओं को ऐसी दवाइयां दी आती है जिनकी सहायता से उनके अंडाशय में एक से अधिक अंडे बनने लगते हैं। इस प्रक्रिया के दौरान महिला की अल्ट्रासाउंड जांच की जाती है ताकि अण्डों की बढ़त को देखा जा सके। अधिक अण्डे इसलिए जरूरी है ताकि उनसे ज्यादा से ज्यादा भ्रूण बनाकर उनमें से सबसे अच्छे भ्रूण का चयन कर स्थानान्तरण किया जा सके।

महिला से अंडा लेने के लिए सबसे पहले महिला को उसके अंडाशय से अंडा उत्पादन के लिए होर्मोन के इंजेक्शन दिए जाते है। जिससे अंडे का उत्पादन और विकास हो सके। अंतिम समय से पहले यानि अंडे के संग्रह से 36 घंटे पहले होर्मोन के इंजेक्शन के माध्यम से अंडों की अंतिम विकास को पूरा किया जाता है।

अंडों को शरीर से बाहर निकालने के लिए महिला को 10 से 15 मिनट के लिए बेहोश किया जाता है। अल्ट्रासाउण्ड इमेजिंग की निगरानी में एक पतली सुई की मदद से अण्डे टेस्ट ट्यूब में एकत्रित किए जाते हैं जो कि लैब में सुरक्षित रख दिये जाते हैं। इस प्रक्रिया के बाद कुछ ही घंटों में महिला अपने घर जा सकती है।


(2) शुक्राणु प्राप्त करना (sperm collection) 

लैब में जिस दिन अंडे को प्राप्त करने की प्रक्रिया अपनाई जाती है, उसी दिन महिला के पुरुष पार्टनर से वीर्य सैंपल से एक स्वस्थ शुक्राणु को संग्रहित कर लिया जाता है। जिन पुरुषों के वीर्य में शुक्राणुओं की संख्या कम होती हैं या गति कम होती हैं। उनके वीर्य सैंपल को प्रोसेस करके बेहतर शुक्राणुओं को लिया जाता हैं और उन्हें ही महिला के अंडे के निषेचन के लिए चुना जाता हैं।

(3) अंडाशय से अंडे का संग्रहण (egg collection) 

एक विकसित अंडे को महिला से प्राप्त करने के लिए लैब में उचित वातावरण में प्रक्रिया अपनाई जाती है। इसके लिए महिला को बेहोशी की दवा दी जाती है, ताकि उस दौरान उसे दर्द या अन्य असुविधा महसूस न हो। इसके बाद एक पतली खोखली सुई द्वारा अंडाशय से अंडे को प्रोब की मदद से संग्रह कर लिया जाता है।

(4) निषेचन (Fartilization) 

लैब में पुरुष के वीर्य से पुष्ट शुक्राणु अलग किए जाते हैं तथा महिला अण्डाशय से निकले अण्डे से निषेचन कराया जाता है। भ्रूण वैज्ञानिक निषेचन के लिए आई.वी.एफ. प्रक्रिया का इस्तेमाल करते हैं। जिन पुरुषों में शुक्राणु की मात्रा काफी कम होती है (1-5 मिलियन प्रति एमएल) उनके लिए इक्सी प्रक्रिया अपनाई जाती है जिसमें एक अण्डे के अंदर एक शुक्राणु को इन्जेक्ट किया जाता है। फर्टिलाइजेशन प्रक्रिया के बाद अण्डे को विभाजित होने के लिए एक इनक्यूबेटर में रखा जाता है। इस अवधि के दौरान निषेचन प्रक्रिया और भ्रूण के विकास की निगरानी की जाती है।

(5) भ्रूण विकास 

भ्रूण वैज्ञानिक इन्क्यूबेटर में विभाजित हो रहे भ्रूण को अपनी निगरानी में रखते हैं व उसका विकास समय-समय पर देखते हैं। 2-3 दिन बाद यह अण्डा 6 से 8 सेल के भ्रूण में परिवर्तित हो जाता है। भ्रूण वैज्ञानिक इन भ्रूण में से अच्छी गुणवत्ता वाले भ्रूण स्थानान्तरण के लिए चयन करते हैं। कई मरीजों में इन भ्रूण को 5-6 दिन लैब में पोषित कर ब्लास्टोसिस्ट बना लिया जाता है जिससे सफलता की संभावना बढ़ जाती है।

(6) भ्रूण स्थानान्तरण या इम्प्लांट (embryo implant)

भ्रूण को कई कोशिकीय अवस्था तक विकसित किया जाता है और उसके बाद भ्रूण को महिला के गर्भाशय में स्थानांतरित कर दिया जाता है जिसे भ्रूण इम्प्लांट कहा जाता हैं। गर्भाशय की झिल्ली को मजबूती और सपोर्ट के लिए होर्मोन दिए जाते है। भ्रूण गर्भाशय में प्रतिस्थापित हो जाने के बाद एक सामान्य गर्भकाल की तरह भ्रूण का विकास होता रहता है।

इस प्रक्रिया में भ्रूण वैज्ञानिक विकसित भ्रूण या ब्लास्टोसिस्ट में से अच्छे भ्रूण का चयन कर उन्हें भ्रूण ट्रांसफर केथेटर में ले लेते हैं। डॉक्टर इस केथेटर को महिला के गर्भाशय में नीचे के रास्ते से डालकर एक पतली नली के जरिए भ्रूण को बड़ी सावधानी से अल्ट्रासाउण्ड इमेजिंग की निगरानी में गर्भाशय में छोड़ देते हैं। इस प्रक्रिया में दर्द नहीं होता तथा महिला को बेड रेस्ट की जरूरत नहीं होती है। भ्रूण का विकास व इसके आगे की प्रक्रिया प्राकृतिक गर्भधारण के समान ही होती है।

टेस्ट ट्यूब बेबी कैसे होता है (how test tube baby born)

इसका उत्तर सरल है। भ्रूण गर्भाशय में प्रतिस्थापित हो जाने के बाद एक सामान्य प्रसव करवाया जा सकता है। और यदि सामान्य प्रसव में कोई परेशानी होती है तो अन्य प्रसवों की भांति सर्जरी से भी डिलीवरी करवाई जा सकती है।



आईवीएफ और टेस्ट ट्यूब बेबी में अंतर (difference between IVF and test tube baby)

आईवीएफ यानि इन-विट्रो फर्टिलाइजेशन एक टर्म है जो की कृत्रिम गर्भाधान के लिए उपयोग में ली जाती है। इनमें बहुत सी तकनीक काम में ली जा सकती है उन्ही तकनीको में टेस्ट ट्यूब बेबी भी कृत्रिम गर्भाधान की एक तकनीक है अर्थात आईवीएफ और टेस्ट ट्यूब बेबी में कोई अंतर नहीं है। (test tube baby technique is called IVF)



टेस्ट ट्यूब बेबी की आवश्यकता क्यों पड़ती है?

कई दंपति जो किसी न किसी कारण से गर्भधारण नहीं कर सकते है या दोनों पार्टनर में से किसी एक में कमी के कारण सामान्य तौर पर बच्चें पैदा नहीं कर पाते है वो आईवीएफ यानि इन-विट्रो फर्टिलाइजेशन टेस्ट ट्यूब बेबी तकनीक का सहारा लेते है।

कुछ कारण जिससे टेस्ट ट्यूब बेबी की आवश्यकता पड़ती है-
  1. अवरुद्ध फैलोपियन ट्यूब (Blocked Fallopian tubes)
  2. बांझपन का कोई कारण ज्ञात न हो
  3. पुरूषों के वीर्य में समस्या (कम स्पर्म, कम गतिशीलता, असामान्य आकार)
  4. वृद्ध रोगी जो बच्चा पैदा करने की इच्छा रखते हैं
  5. कम डिम्बग्रंथि रिजर्व
  6. पॉलीसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम (Poly cystic Ovary Syndrome)
  7. समय से पहले डिम्बग्रंथि विफलता (Premature Ovarian Failure)
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