रविवार, जुलाई 18

पीलिया के कारण, लक्षण, जाँच, उपचार (jaundice in hindi)

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पीलिया (Jaundice)

पीलिया (jaundice) उस बीमारी का नाम है जो त्वचा और आंखों में पीलेपन के रूप में प्रकट होती हैं, यह पीलापन रक्त में पाई जाने वाले एक पिगमेंट जिसे बिलीरुबिन कहा जाता हैं, के कारण दिखाई देता हैं। यह बिलीरुबिन त्वचा और म्यूकस मेंब्रेन (mucus membrane) में सामान्य से अधिक जमा होने के कारण बाहर दिखाई देने लगता हैं।

हमारे शरीर में पाई जाने वाली लाल रक्त कोशिकाएं (RBC) जिसका औसत जीवनकाल 120 दिन का होता है। अपने जीवनकाल की समाप्ति पर यह लाल रक्त कणिकाएं टूट जाती है जिसके कारण इसमें मौजूद हिमोग्लोबिन निकल जाता है। इस हिमोग्लोबिन के नष्ट होने से बिलीरुबिन (bilirubin) बनता है। इस बिलीरुबिन का निष्कासन करना आवश्यक होता है क्योंकि यह एक टॉक्सिक पदार्थ है।

शरीर में टॉक्सिक पदार्थों के निष्कासन का कार्य यकृत या लीवर (liver) द्वारा किया जाता है। जब यह बिलीरुबिन लीवर में जाता है और वहाँ से पाचन तंत्र में ले जाया जाता है और इसका निष्कर्षण मल और मूत्र के साथ कर दिया जाता है।

                    jaundice, पीलिया


सामान्य अवस्था में यह प्रक्रिया चलती रहती है। किंतु लीवर की बीमारी या पाचन तंत्र में रुकावट के कारण इस बिलुरुबिन का निष्कासन नहीं हो पाता है। इस वजह से इसकी मात्रा रक्त में ही बनी रहती है जो त्वचा, नाखून और आंखों में पीलेपन के रूप में दिखाई देती है।

कई बार लीवर (liver) सामान्य रूप से कार्य करता रहता है किंतु अधिक आरबीसी (RBC) के टूटने से लीवर पर बोझ बढ़ जाता है जिसके कारण बिलीरुबिन की मात्रा रक्त में बढ़ जाती है।

पीलिया कैसे होता हैं? या पीलिया के कारण (jaundice causes)

(1) Pre Hepatic

पीलिया होने के मुख्य रूप से तीन कारणों को गिना जा सकता है जिसमें पहला है, यकृत से पूर्व की स्थिति (Pre hepatic) अर्थात पीलिया होने का कारण लीवर नहीं होता है, बल्कि लीवर में पहुचने से पूर्व की स्थिति है। इस स्थिति में यद्यपि लीवर की कार्यशैली और कार्य क्षमता सामान्य होती है, किंतु जब लाल रक्त कोशिकाओं की संख्या तेजी से नष्ट होती है जिसके कारण अधिक बिलुरुबिन की उत्पत्ति होती है।

इस अतिरिक्त बिलुरुबिन को लीवर पूरी तरीके से निष्कासित नहीं कर पाता है। इस प्रकार के पीलिया होने बहुत से कारण है। जैसे- थैलेसीमिया, मलेरिया, ऑटोइम्यून डिजीज, कुछ प्रकार की दवाओं या टॉक्सिक पदार्थों का सेवन, स्पैरोसाइटोसिस आदि।


(2) Hepatic

दूसरी अवस्था लीवर से संबंधित होती है जिसे हिपेटिक (यकृत संबंधी) अवस्था कहा जाता है। इस स्थिति में यद्यपि बिलुरुबिन की उत्पत्ति सामान्य रूप से होती है, किंतु लिवर की बीमारी के कारण यह अपना काम ढंग से नहीं कर पाता है। जिससे सम्पूर्ण बिलीरुबिन निष्कासित नहीं हो पाता है और बिलुरुबिन रक्त में ही बना रहता है। जो त्वचा और आंखों में दिखाई देने लगता है।

लीवर की बीमारी के कई स्रोत हो सकते हैं जैसे- लिवर सिरोसिस, विभिन्न प्रकार की हेपेटाइटिस (जैसे हेपेटाइटिस ए, हेपेटाइटिस बी, हेपेटाइटिस सी, हेपेटाइटिस डी, हेपेटाइटिस ई आदि), गिलबर्ट सिंड्रोम, केक्रिगलर नाइजर सिंड्रोम या कुछ दवाओं के सेवन।

(3) Post hepatic

तीसरी स्थिति में यद्यपि बिलुरुबिन की सामान्य उत्पत्ति होती है और लीवर भी सामान्य रूप से कार्य करता है। किंतु लीवर द्वारा निष्कासित बिलुरुबिन जब आंतो में या पित्त वाहिनी (bile duct) में जाता है तो वहां रुकावट के कारण बिलीरुबिन पुनः रक्त में मिश्रित हो जाता है जिसके कारण बिलुरुबिन बढ़ जाता है। आंतो में या पित्त वाहिनी (bile duct) में रुकावट के कई कारण हो सकते हैं जैसे- पथरी, ट्यूमर आदि।

पीलिया के प्रकार (types of jaundice)

इस आधार पर पीलिया को तीन भागों में विभक्त किया जा सकता है।

1. नवजात शिशु में पीलिया (neonatal jaundice) या फिजियोलॉजिकल जौंडिस (physiological jaundice)

नवजात शिशु में होने वाला यह सबसे सामान्य प्रकार का पीलिया है, जो कि दो तिहाई मामलों में देखने को मिलता है और शीघ्र ही ठीक भी हो जाता है। इस प्रकार के पीलिया में नवजात शिशु का लीवर विकसित नहीं हो पाता है। यह अविकसित लीवर सामान्य बिलीरुबिन को निष्कासित नहीं कर पाता है। इस कारण ब्लड में बिलीरुबिन लेवल बढ़ जाता है। कई लोगों का सवाल है कि पीलिया कितने दिन रहता है? तो जन्म के कुछ दिनों तक जैसे-जैसे लीवर विकसित होता जाता है, बिलुरुबिन लेवल घटता जाता है।

2. हिपेटिक जौंडिस (hepatic jaundice)

हिपेटिक शब्द लीवर से संबंधित है। लीवर के कारण होने वाली जॉन्डिस को हैपेटिक जौंडिस कहा जाता है। ऊपर के विवरण के अनुसार लीवर में बीमारी के कारण यह देखा जाता है। लीवर की स्थिति के आधार पर पीलिया सही होने में कुछ दिन से लेकर कुछ वर्ष भी लग सकते है।
 

3. ऑब्स्ट्रक्टिव जौंडिस (obstructive jaundice) 

इस प्रकार के पीलिया में पित्त वाहिनी या बाइल डक्ट में या आंतों में रुकावट के कारण पीलिया दिखाई देने लगता है।

पीलिया के लक्षण (jaundice symptoms)

एक व्यक्ति में पीलिया होने के कई लक्षण हो सकते हैं और बिलुरुबिन की मात्रा के आधार पर यह लक्षण अधिक या कम हो सकते हैं। जब बिलुरुबिन की मात्रा कम होती है तब तो केवल आंखों या त्वचा के माध्यम से पीलिया का पता नहीं लगाया जा सकता है। जब बिलुरुबिन लेवल अत्यधिक बढ़ जाता है तब यह त्वचा, आंखों और नाखून में पीलेपन के रूप में देखा जा सकता है।

त्वचा में खुजली:- जब बिलुरुबिन का लेवल अत्यधिक बढ़ जाता है तो इसके कारण खुजली होने लगती है, क्योंकि बिलुरुबिन एक टॉक्सिक पदार्थ है।

पेशाब या मूत्र का रंग:- सामान्य अवस्था में व्यक्ति के यूरिन का रंग हल्का पीला होता है किंतु पीलिया होने की अवस्था में यूरिन के रंग अत्यधिक पीला दिखाई देने लगता है।

मल का रंग:- पीलिया के कारण मल के रंग में परिवर्तन देखने को मिल सकता है। पीलिया के प्रकार के आधार पर यह अत्यधिक गहरा रंग का अथवा अत्यधिक हल्का रंग का हो सकता हैं। प्री हिपेटिक और हिपेटिक जोंडिस मे मल का रंग अत्यधिक गहरा हो जाता है और यदि आंतों में या पित्त वाहिनी में रुकावट होती है तो यह बिलुरुबिन का निष्कासन नहीं होने के कारण मल का रंग हल्का दिखाई देता है। इसके अलावा लिवर के कारण कई समस्याएं दिखाई दे सकती है। जैसे-
  • पेट दर्द
  • पेट में सूजन
  • पेट भारी लगना,
  • भूख में कमी
  • दस्त (Diarrhea)
  • मतली (Nausea)
  • उल्टी (vomiting)

पीलिया का टेस्ट (jaundice test)

पीलिया की जांच के लिए कई प्रकार के टेस्ट हैं जिसके माध्यम से पीलिया रोग और उसके कारणों को डायग्नोसिस किया जा सकता हैं। आपके लिए कौन सा टेस्ट सही रहेगा इसका निर्धारण डॉक्टर द्वारा किया जाता है। यह एक या एक से अधिक एक साथ करवाए जा सकते हैं। कुछ टेस्ट इस प्रकार से है।
(1) खून जांच (blood test)
बिलुरुबिन टेस्ट (bilirubin test in hindi) टोटल बिलुरुबिन यह ब्लड टेस्ट सबसे सामान्य टेस्ट है और अधिक सही रिजल्ट देने में समर्थ है क्योंकि यह आपके बिलुरुबिन लेवल को मापता है। यह दो प्रकार का होता हैं।
(i) डायरेक्ट बिलुरुबिन और (ii) इनडाइरेक्ट बिलुरुबिन
दोनों को सम्मलित रुप से टोटल बिलुरुबिन कहा जाता है। इसके आधार पर बिलुरुबिन का पता लगाया जा सकता है। 
बिलुरुबिन टेस्ट की कीमत (bilirubin test price/bilirubin test cost)
बिलुरुबिन टेस्ट की कीमत 100 रूपये से लेकर 250 रूपये तक हो सकती है।
पीलिया की नार्मल रेंज
टोटल बिलुरुबिन की मात्रा एक मिलीग्राम प्रति डेसीलीटर से कम होना चाहिए।

हेपेटाइटिस वायरस की जाँच : ब्लड टेस्ट में हेपेटाइटिस वायरस का पता लगाया जा सकता है जो कि हेपेटाइटिस बी और सी सबसे सामान्य है। इसके अतिरिक्त हेपेटाइटिस ए, हेपेटाइटिस डी और हेपेटाइटिस ई भी करवाया जा सकता है।

लीवर एंजाइम की जाँच : लीवर के कई एंजाइम जैसे गामा जीटीटी (gamma GTT) एसजीओटी (SGOT/AST) एसजीपीटी (SGPT/ALT) जो लीवर की स्थिति के बारे में जानकारी प्रदान कर सकते हैं।

प्रोथोंबिन टाइम या पीटी (Prothombin time-PT) लिवर रक्त के थक्के में शामिल प्रोटीन का उत्पादन करता है। पीटी असामान्य होने लिवर में क्षति का कारण हो सकता है।

सीबीसी की जांच (CBC test) जो हीमोग्लोबिन, आरबीसी की संख्या आदि की जांच करता है। कई बार कम हीमोग्लोबिन की वजह से त्वचा और आंख का रंग में पीलापन दिखाई देता है। इससे यह डायग्नोस किया जा सकता है कि एनीमिया है या पीलिया।

ब्लड फिल्म (PBF) इसके साथ साथ ब्लड फिल्म की जांच जिसमें यदि अवयस्क लाल रक्त कोशिकाओं की संख्याएं रक्त की अधिक हानि को इंगित कर सकता है।

(2) लीवर की सोनोग्राफी (USG)
(3) सीटी स्कैन (CT Scan)
(4) एम आर आई (MRI)
(5) यूरिन या मुत्र की जांच (Urine Test)
(6) मल की जांच (stool test)


पीलिया का इलाज हिंदी (jaundice treatment)

जैसा कि आपने देखा कि पीलिया के कई प्रकार है और केवल एक दवाई से पीलिया का इलाज नहीं किया जा सकता है। जैसे लीवर में बीमारी होने पर उस बीमारी का इलाज करने पर बिलुरुबिन सामान्य हो सकता है। इसी प्रकार आंतो में पित्त वाहिनी या बाइल डक्ट में रुकावट को ऑपरेशन द्वारा हटाया जाता है।
बच्चों में होने वाला पीलिया जिसे फिजियोलॉजिकल जौंडिस कहा जाता है, इसके लिए फोटो थेरेपी दी जाती है। इसमें शिशु को एक लाइट ले नीचे रखा जाता है। जिसके कारण कुछ ही दिनों में लिवर द्वारा बिलुरुबिन के निष्कासन की प्रक्रिया शुरू होने पर बिलुरुबिन सामान्य होने लगता है। लिवर सिरोसिस या लीवर की बीमारी में लीवर की सर्जरी द्वारा या कई प्रकार के हेपेटाइटिस का इलाज एंटीवायरल दवा द्वारा किया जाता है।
पीलिया की अंग्रेजी दवा लिवर टॉनिक या लिवर की टेबलेट के साथ कुछ प्रकार के देसी दवा जो लीवर को मजबूत बनाते हैं, का उपयोग किया जाता है।
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