शुक्रवार, अगस्त 19

जेएसबी स्टैंन और स्टैंनिग प्रक्रिया (JSB stain)

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जेएसबी स्टैंन (JSB Stain) को जसवंत सिंह भट्टाचार्य स्टैंन कहा जाता है। यह जसवंत सिंह भट्टाचार्य स्टैंन नहीं होकर जसवंत सिंह और भट्टाचार्य स्टैंन है। अर्थात यह एक व्यक्ति नहीं बल्कि दो व्यक्ति हैं जसवंत सिंह और भट्टाचार्य। जेएसबी स्टैंन (JSB stain) का पूरा नाम हैं जसवंत सिंह और भट्टाचार्य स्टैंन। इन्होंने इस स्टैंन को इजाद किया था और इस कारण इसको उन्हीं के नाम से जेएसबी स्टैंन (JSB Stain) के रूप में जाना जाता है।

जेएसबी स्टैंन (JSB Stain) का उपयोग मुख्य रूप से मलेरिया के लिए उपयोग में ली जाने वाली ब्लड स्लाइड या ब्लड फ़िल्म को स्टैंन करने के लिए किया जाता है अर्थात इसके द्वारा मलेरिया पैरासाईट को स्टैंन करके पहचाना जाता है।

जेएसबी स्टैंन दो स्टैंन वाली अलग-अलग बॉटल में उपलब्ध होती हैं। जेएसबी स्टैंन तैयार करने के लिए आवश्यक सामग्री इस प्रकार से है।

जेएसबी 1 (JSB1)

Eosin, Yellow (water soluble) ..... 1.0 g

Distilled water ...... to 500 ml


जेसीबी 2 (JSB2)

Methylene blue .......... 0.5 g

Sulphuric acid 1% solution ......... 3.0 ml

Potassium dichromate ............... 0.5 g

Disodium hydrogen phosphate .... 3.5 g

Distilled water .......... to 500 ml

                           jsb-stain

जेएसबी2 या लाल कलर के स्टैंन में प्रयोग की जाने वाली डाई इयोसीन (eosin) होती है जो कि प्रकृति में अम्लीय या एसिडिक होती है जबकि जेएसबी1 क्षारीय प्रकृति ही होती है जिसमें मुख्य रुप से मिथाईलीन ब्लू (methyline blue) डाई का उपयोग किया जाता है। यह स्टैंन बाजार में रेडी टू यूज उपलब्ध रहता है अथवा बनाया भी जा सकता है।


जेएसबी स्टैन को कैसे तैयार करें?

जेएसबी स्टैन बनाने के लिए 1% इयोसीन (eosin) को पानी में घोला जाता है और अंत में इसका वॉल्यूम या आयतन 500 ml कर दिया जाता है। यह जेएसबी2 के नाम से जाना जाता है।

  • जेएसबी1 स्टैन को बनाने के लिए 0.5 मिथाइल ब्लू को 500 ml पानी में घोला जाता है। 
  • इसमें 3 ml ताजा तैयार किया गया 1% सल्फ्यूरिक एसिड को बूंद बूंद करके मिलाया जाता हैं।
  • इसमें 0.5 ग्राम पोटेशियमडाईक्रोमेट मिलाया जाता हैं और अच्छी तरीके से मिक्स किया जाता है। इससे महीन क्रिस्टल दिखाई देने शुरू हो जाएंगे।
  • इसमें 3.5 ग्राम डाईसोडियम हाइड्रोजन फोस्फेट मिला कर डेढ़ घंटे तक उबाला जाता हैं। इसके बाद इसे ठंडा होने के लिए रख लेते हैं। 
  • अंतिम रूप से इसका आयतन पानी मिलाकर 500 ml कर दिया जाता है।

इसको जब भी उपयोग में लिया जाता है तो यह छानकर उपयोग में लिया जाना चाहिए और जिस पात्र में डाला जा रहा है वह पत्र बिल्कुल ही साफ सुथरा होना चाहिए।


मलेरिया की स्लाइड कैसे बनाई जाती हैं? (malaria slide making)

जैसा कि आप जानते हैं कि मलेरिया (malaria) के लिए एक स्लाइड पर दो फिल्म (smear) बनाई जाती है।

मोटी फिल्म (thick smear)

पतली फिल्म (thin smear)

malaria-stain

यह दो प्रकार की फिल्म जिसमें एक मोटी फिल्म जो मलेरिया पैरासाइट के खोजने (detection) के लिए काम में आती है जबकि दूसरी पतली फिल्म पैरासाइट की जाति या स्पीशीज की पहचान (identification) के लिए काम में आती है।

1. इस फिल्म को बनाने के लिए कांच की एक साफ-सुथरी स्लाइड ली जाती हैं।

2. इसके एक किनारे पर ब्लड की तीन ड्रॉप ली जाती है और कांच की दूसरी स्लाइड के एक कोने से इसे गोल-गोल घुमाते हुए 1 सेंटीमीटर एरिया में फैलाई जाती है इसे मोटी फिल्म (thick smear) कहा जाता है।

3. दूसरी फिल्म इससे कुछ दूरी पर ऊपर की और 1 सेंटीमीटर जगह छोड़कर ब्लड की एक ड्रॉप ली जाती है और उस पर कांच की दूसरी स्लाइड जिसे स्प्रेडर कहा जाता है, की सहायता से टच करके एक लंबी जीभ के आकार की पतली फिल्म बनाई जाती है इसे पतली फिल्म (thin smear) कहा जाता है।

4. अब इस फिल्म को हवा में सूखने के लिए एक-आधे घंटे के लिए रख दिया जाता है। सूखने के बाद इसे डीहिमोग्लोबिनॉइज (dihemoglobinised) और फिक्स (fix) किया जाता है।

डीहिमोग्लोबिनॉइज और फिक्स (dihemoglobinisation and fixation)

ब्लड की मोटी और गोल फ़िल्म में आरबीसी (RBC) की एक के ऊपर एक परत होती है। इसमें आरबीसी एक के ऊपर एक लगी रहती है और इसमें पैरासाइट को पहचानना मुश्किल होता है क्योकि आरबीसी में रंगीन पदार्थ हिमोग्लोबिन (hemoglobin) भरा होता है। इस कारण इस मोटी फिल्म को पहले डीहिमोग्लोबिनॉइज करना पड़ता है जिसके कारण आरबीसी के अंदर मौजूद हिमोग्लोबिन बाहर निकल जाता है और उसमें मौजूद पैरासाइट को आसानी से पहचाना जा सकता है।

डीहिमोग्लोबिनॉइज करने के लिए इस फिल्म को पानी के संपर्क में लाया जाता है जिससे आरबीसी फट जाती है और हिमोग्लोबिन बाहर निकल जाता है।

इसके लिए सीधे पानी के संपर्क में लाकर डीहिमोग्लोबिनॉइज किया जा सकता है अथवा जीएसबी2 जिसमें मुख्य रुप से पानी (99%) होता है। यदि हम इसे जेएसबी2 में स्लाइड को डुबो दें तो यह फिल्म डीहिमोग्लोबिनॉइज हो जाएगी और स्टेन भी हो जाएगी।

इसके अलावा दूसरी फिल्म जिसे थिन (thin) फिल्म या पतली फ़िल्म कहा जाता है। इसको पहले सुरक्षित (fix) किया जाता है जिससे यह डीहिमोग्लोबिनॉइज न हो। इसके लिए मेथेनॉल (methenol) का प्रयोग किया जाता है। पतली फिल्म को एक दो बार मेथेनॉल में डुबोकर बाहर निकाल कर रख दिया जाता हैं जिससे वह फिक्स हो जाती है इस बीच ध्यान रहे कि thin smear मेथेनॉल में नहीं डूबनी चाहिए। स्लाइड को सुरक्षित (fix) कर लेने पर आरबीसी और पैरासाइट के आकार और आकृति में कोई परिवर्तन नहीं आता है और उसके बाद स्टैंन कर दिया जाता है।


मलेरिया स्लाइड को स्टैंन करने की प्रक्रिया ( jsb staining procedure for malaria)

  1. स्टैंन (stain) के लिए सर्वप्रथम जेएसबी2 स्टैंन (JSB2)काम में लिया जाता है।
  2. कोपलीन जार में भरे जेएसबी2 में स्लाइड को 2 या 3 सेकंड के लिए डुबाया जाता है या दो या तीन डीप (dip) करके बाहर निकाल दिया जाता है।
  3. इसके पश्चात इसे बफर पानी (pH 6.8 buffer water) में डुबोकर धो लिया जाता है या पानी से भरे जार में डीप (dip) कर लिया जाता है।
  4. इसके बाद इसे जेसीबी1 स्टैंन (JSB1) में 30 से 40 सेकंड के लिए कोपलीन जार में भरे स्टैंन में रखा जाता है। ध्यान रहे कि इसमें दोनों फिल्म पूरी तरह से डुबनी चाहिए।
  5. इसके पश्चात इसे फिर से पानी से वॉश (wash) करके सुखने के लिए रख लिया जाता है।

जब यह स्लाइड पूरी तरीके से सूख जाती है तब इसे माइक्रोस्कोप में ऑयल इमल्शन लेंस पर (100x) पैरासाइट को बारी-बारी से खोजा जाता है। सर्वप्रथम मोटी (thick) फिल्म में पैरासाइट को खोजा जाता है और यदि इसमें पैरासाइट मिल जाता है अर्थात स्लाइड मलेरिया के लिए पॉजिटिव होती है तब पतली (thin) स्मीयर में पैरासाइट की स्पीशीज पता किया जाती है कि पैरासाइट कौन सी प्रजाति का है। आप जानते हैं कि प्लाज्मोडियम की कई प्रजाति होती है जैसे प्लाज्मोडियम फेल्सीपैरम, प्लाज्मोडियम वाईवैक्स, प्लाज्मोडियम मलेरी, प्लाज्मोडियम ओवेल। इसके साथ ही उनके जीवन चक्र की कई अवस्था अर्थात ट्रोफोजोइट, साइजॉयड्स है या गेमीटोसाइट आदि दिखाई डे सकते है।


स्लाइड में देखने पर मलेरिया के परजीवी इस प्रकार से दिखाई देते है।

मलेरिया के परजीवी

साइटोप्लाज्म - नीला रंग।

क्रिमेटिन - गहरा बैंगनी लाल।

पिगमेंट - अरंजित पीले रंग में विभिन्न प्रकार की छाया में।






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